Book Title: Geeta Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 10
________________ करते हुए अनुवाद को कोष्ठकों से बाहर तथा अपनी व्याख्यात्मक टिप्पणियों को सर्वत्र कोष्ठकों के भीतर ही दिया है। गीता-चयनिका की तीसरी विशेषता चयनित श्लोकों की भाषा का व्याकरणिक विश्लेषण है। यह एक नया प्रयोग कहा जा सकता है। डॉ. सोगाणी अपनी पूर्व चयनिकाओं में प्राकृत भाषा का ऐसा विश्लेषण प्रस्तुत कर चुके हैं पर संस्कृत के सन्दर्भ में इस विश्लेषणपद्धति का प्रयोग लेखक की एक बिल्कुल नयी देन है। इस विश्लेषण में एक स्वउद्भावित सांकेतिक पद्धति की सहायता से प्रत्येक श्लोक के शब्दों एवं रचना-पद्धति का सूक्ष्म व्याकरणिक विश्लेषण किया गया है। यह विश्लेषण चयनिका के भाषा-पक्ष की अवगति में विशेष रूप से सहायक है। भाषा-विश्लेषण की यह पद्धति इतनी मौलिक तथा उपयोगी है कि संस्कृत-क्षेत्र में कार्य करने वाले विद्वान् भी इसे अपना कर लाभान्वित हो सकते हैं। विद्वान् लेखक ने चयनिका की प्रस्तावना में गीता के दार्शनिक चिन्तन का मौलिकतापूर्ण विवेचन किया है। गीता-दर्शन में आपाततः अनेक विसंगतियाँ एवं विरोधाभास दृष्टिगत होते हैं। डॉ. सोगाणी ने अपनी तत्त्वग्राहिणी दृष्टि से गीता-दर्शन के इन विरोधाभासों का समाधान करते हुए उसके मौलिक सन्देश एवं तात्पर्य को पर्याप्त स्पष्टता के साथ प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार गीता का आदर्श कर्मयोगी है जो गुणातीत एवं भक्तियोगी से अभिन्न है। गीता में ज्ञानयोगी या कर्मसंन्यासी (V) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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