Book Title: Essays Lectures on Religion of Hindu Vol 02
Author(s): H H Wilson
Publisher: Trubner and Company London

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Page 287
________________ OF THE HINDUS. 277 the Sútras is little inferior to that of the Veda; and here, therefore, we have additional and incontestable proof, that the Rig Veda does not authorise the practice of the burning of the widow. In order that there may be no room for cavil, I subjoin the whole of the hyinn in the original, with Sáyana's comment on the seventh and eighth verses; the passage from the Sútra also occurs subsequently". | 1. परं मृत्यो अनु परेहि पंथां यस्ते स्व इतरो देवयानात चक्षुष्मते शृण्वते ते ब्रवीमि मा नः प्रजां रीरिषो मोत वीरान ॥ 2. मृत्योः पदं योपयन्तो यदैत द्राघीय आयुः प्रतरं दधानाः आप्यायमानाः प्रजया धनेन शुद्धाः पूता भवत यज्ञियासः ॥ 3. मे जीवा वि मृतैरा ववृत्रन्नभूद्भद्रा देवहूतिनों अद्य प्राञ्चो अगाम नृतये हसाय द्राधीय आयुः प्रतरं दधानाः ॥ 4. इमं जीवेभ्यः परिधिं दधामि मैषां नु गादपरो अर्थमेतं शतं जीवंतु शरदः पुरूचीरंतर्मृत्यु दधतां पर्वतेन ॥ 5. यथाहान्यनुपूर्व भवंति यथ ऋतव ऋतुभिर्यति साधु ____ यथा न पूर्वमपरो जहात्येवा धातरायूंषि कल्पयैषां ॥ 6. आ रोहतायुर्जरसं वृणाना अनुपूर्व यतमाना यति ष्ठ ____ इह त्वष्टा सुजनिमा सजोषा दीर्घमायुः करति जीवसे वः । 7. इमा नारीरविधवाः सुपत्नीरांजनेन सर्पिषा सं विशंतु ___अनथवो ऽनमीवाः सरत्ना आ रोहंतु जनयो योनिमग्रे ॥ 8. उदीर्घ नार्यभि जीवलोकं गतासुमेतमुप शेष एहि ___हस्तग्राभस्य दिधिषोस्तवेदं पत्युर्जनित्वमभि सं बभूथ ॥ 9. धनुर्हस्तादाददानो मृतस्यास्मे क्षत्राय वर्चसे बलाय अत्रैव त्वमिह वयं सुवीरा विश्वाः स्पधी अभिमातीर्जयेम ॥ 10. उप सर्प मातरं भूमिमेतामुरुव्यचसं पृथिवी सुशेवां ऊर्णम्रदा युवतिर्दक्षिणावत एषा त्वा पातु निर्धतेरुपस्थात् ॥ 11. उच्छृचस्व पृथिवि मा नि बाधथाः सूपायनास्मै भव सूपवंचना माता पुत्रं यथा सिचाभ्येनं भूम ऊहि ॥ 12. उच्छंचमाना पृथिवी सु तिष्ठतु सहस्रं मित उप हि श्रयंतां ते गृहासो घृतश्चुतो भवंतु विश्वाहास्मै शरणाः संवत्र। 13. उत्तै स्तभामि पृथिवीं त्वत्परीमं लोगं नि दधन्मो अहं रिषं एतां स्थूणां पितरो धारयंतु ते ऽत्रा यमः सादना ते मिनोतु ॥

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