Book Title: Epigraphia Indica Vol 26
Author(s): Hirananda Shastri
Publisher: Archaeological Survey of India
View full book text
________________
No. 35 ] RATANPUR STONE INSCRIPTION OF THE (KALACHURI] YEAR 915
259
2 [मणि:*] ॥१॥ य[त्क]ण्ठो भूति - -1 [ध*]वलपरिसरः कज्जलन्दीवरालीभृङ्गश्रेणी
न्द्रनीलोपलगवलतमःस्तीमलक्ष्मीविडम्वी(म्बी) । भाति प्रालेयभूभृत्कटकतट इव
श्यामलनांवु(बु)भाराप्ती धाराधरेण प्रभवतु ।' 3 [भ]वतां स थिये नीलकण्ठः ॥२॥ व्र(ब)ोद्रोपद]चंद्रद्युमणिकुलगिरिमासमुद्रादिरूपै
ोकं संक्रान्तवि(बि)म्ब(म्ब) नखमुकुरतले यत्पदामा(मा)गुलौनाम् । दृष्ट्वा
शैलेंद्रपुत्रौ परिणयसमये विस्मयं प्राप लज्जानम्रीभूतान4 नेदुः स हरतु दुरितं पार्वतीवल्लभो वः ॥३॥ यत्क्रोडे जठरैककोटरकुटीविश्रान्त
विश्वश्चिरं लक्ष्मीपाणिसरोजलालितपदो निद्राति नारायणः । किञ्चानेकफणामणि
व्यतिकरै रत्नाकरत्व दधावम्भी5 धिर्बिदधातु शर्म जगतां शेषः स भोगोखरः ॥४॥ उत्फुल्लांबु(बु)रु हे[:] [सरो
भिरभितो गुञ्जहिरेफैर्वृतं] - - - पवनोलसत्कदलिकारोचिष्णुभिर्भूषितम् । .
उद्यानैः कलकण्ठकूजितभरव्याकष्टपुष्पायुधैर6 स्ति श्रीतलहारिमण्डलमिदं विश्वम्भराभूषणम् ॥५॥ उन्मीलनवनी[लनीरज] - - -
- -- ---- --- - [वाचाल]-*
दिसण्डले । सङ्गीतिध्वनिपूर्णका]ि कुहरैरध्यापकैः कौतुकादन्तेवा7 सिगणस्व यत्र पठतो नावद्यमाकर्ण्यते ॥६॥ इह फणिपति -----
- --Uuuuuu - - - - - - - । भ्रमति यशसि शुभ्रे यस्य विष्वक्चकोराः शशधरकरवु(बु)याद्यापि
धाव
8 न्ति सोत्काः ॥७॥ यहाटके झटिति धूम
तिः स्पृशन्ती व्योमाङ्गणे] . UU-U--I-- -UUU-U - U थालोकिता जलदजालधिया ध्वनद्भिः ॥८॥ पृथ्वीपालस्ततीभूत्करतलक
The missing aksharas may have been charcha. 2 This danda is superfluous.
* The Ratanpur MS. reads gunjad-dvirëph-avalir=amr-adeh pavan-ollasat which makes no good senso. Perhaps the original reading was e-amr-ady-opavan-ollasat.
• The Ratanpur MS. furnishes here the fairly satisfactory reading vana-sräuyam (syandan-) maranda-sprihabhramyad-bhüri-madhuvral-ali-vitatām (virutair)=vachala-din-mandalē.
The mising aksharas can be supplied with the help of the Ratanpur MS. s räkänaiha-karpura-para-pra chura-rajata-ratah-kshira-här-adik-abha.

Page Navigation
1 ... 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448