Book Title: Epigraphia Indica Vol 06
Author(s): E Hultzsch
Publisher: Archaeological Survey of India
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290.
EPIGRAPHIA INDICA.
[Vor. VI.
27 गते नाकमाकम्प्रितरिपुव्रजे । श्रीमहाराजय ख्यः खातो' राजाभ
वहुणैः । [२२] पर्धिषु यथावंतां यः 28 समभीष्टफलावातिलब्धतेषेस' । वृषिविनाय घरमाममोधवर्षाभिधानस्य ।
[२३] राजाभूत्तत्पि[तव्यी रिपुभववि29 भवोत्यभावकहतुलनीमानिंद्रराजो गुणनृपनिकरान्तवसत्वारकारी'। [रा]
गादया]म्ब्युदस्व प्रकटितविष80 यावं तृपा सेवमाना राजवीरव [च] के सकलकविनमाहीततथ्य
स्वभाव: । [२४] निर्वाणावाप्तिवाणासहितहितज31 ना यस्य माना: सुबत्तं वृत्तं जित्वान्धराज्ञां चरितमुदयवान्भवतो
[हिन्क] केभ्यः' । एकाको दृप्तवैरिवलनक्षतिगह[पा' 32 तिरी[ज्ययाचं कुर्लाटीयं मडलं प[स्तमय व निजखामिदत्तं ररच ॥
[२५] सूनुर्बभूव खलु तस्य महानुभाव: "शामार्थवोधसुखखा83 लितरित्वात्तिर्यो' गी[ना]मपरिवारमुवाह पूर्व श्रोकराजसुभ[ग]व्यप
देश[स]थे." ॥ [२६] श्रीकर्बराज इति रक्षितरा34 ज्यभारः सारं कुल[स्य] तनयो नयशालिशौर्यः । तस्वाभव[दि]भवनंदि
तवन्धुसार्य" () पार्थः सदेव धनुर्षि प्रथमः [चीं]36 नां ॥ [२०] दानेन मानेन सदान्जया वा वोयेंच शौर्येण च
कोपि भूपः । एतेन तुल्योस्ति न वत्ति कीर्तिः सकौवका"
भ्राम्यति य[स्य] लोके ॥ [२८] 36 [स्वेच्छा]महोतविषया[न] दढसंघमाण: "प्रोवृत्तदप्तरथरिखकराष्ट्रकूटा" ।
____ उत्खात[]निजवाहवलेन' विवा योमोधव37 र्ष इति राज्यपदे व्यत्ति ॥ [२८] पुत्रीयतस्तस्य महानुभाव: तो
वतः छतवीर्यवीर्यः । वयोवतायेषनरेन्द्रद्वन्दो बभूव"
1 Read खातो.
+Rend चवीषेषु ___Read अमत्कार To this letter yd a superfluous sign of the vowel & is conjoined. • Rend कृपान्..
Read खमा. * The rending intended is probably fee : m in the Nausart plates of Karks (J. B. B. R. 4. 8. Vol. XX. p. 189). • Radकतिसमातिराधेशमंकु. Read मस .
Read भूव. I Read शास्त्रार्थवीध
"Read सितचित्तवृत्ति: । यो गौर. MEnd "मुः।
- Read' .
"Rand वैति. * Read सकौतुवा.
M Rend°दृप्ततर.
"Read फूटान " Bond 'बापन Read f u e in accordance with the Baroda plates of Dhrava I. Bend बभूब
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