Book Title: Epigraphia Indica Vol 06
Author(s): E Hultzsch
Publisher: Archaeological Survey of India
________________
342
EPIGRAPHIA INDICA.
[VOL. VI.
73 नसंचयो निष्फल(ल)धनसंग्रहाइनखरात [*] निखिललोकनिर्व्याजबान्धवो
*दनदैकमित्राहिरिधन्व74 न: [*] यश्च बहु(ब)श्रुतिरखिलभूभुवनभारभरणलीलातुलितादपि श्रुतिविही
नाचक्षु:]75 श्रवसामधीखरात' [*] अखि*]ण्डितसत्तम[ण्ड]लो जगदाडादनवि[धि]स
धर्मणोपि खण्डितसहत्ताच्च 'मंशलक्ष्म76 णो गुणविशेषाभिन[1]नमहनीयमतिमहिना महाजनेन नूनं बहुमन्यते ।
स सर्वलोकाथ77 यश्रीविष्णुवईनमहाराज[1]धिराजो राजपरमेश्वरः परममाहेश्वरः परमभट्टा
रकः परमब्र78 झण्यो राजराज इत्यन्वितापरनामधेयानंदितसकलदिमण्डलो मंडलेखर
मौलिविलसितचरणा79 रविंदरेणुस्मकलभुवनसंस्तयमानविशदविशालयशोराशिविशदोकताशेषदिक्चक्रवा
लचक्रव
80 तिलक्षणाभिराम[:*] श्रीचोडगंगदेव: सकलधरातलसाम्राज्यलीलासुखमनुभवन् कदाचित् कुलराज
Fourth Plate; First Side. 81 धान्या जननाधनामनगामशेषभुवनाभ्यंतरापूरणातिरिक्तनिजयशोराशिशंकां
जनय82 त: कैलासशैलविलासिनस्ममुत्तुंग्ग[शि] खरस्य' सौधस्यास्थानभूमौ सकलसामंत
चक्रप्रमुख83 न परिवारण परितस्मेव्यमानः म बे]टिमहेंद्रमध्यवर्तिनो राष्ट्रकूटप्रमुखान्
कुटिबिनस्स84 |न् समाइय मंत्रिपुरोहितसेनापतियुवराजदौवारिकप्रधानसमक्षमित्थमान[T]
पय86 ति । यथा [*] मंति मइंशभूपालपादपद्मोपजीविनः [*] भृत्याः
त्यविधौ दक्षा: शौर्यादिगुणशालिनः । [३७*] तमध्ये 86 परया भक्त्या शक्त्या च प्रज्ञया सदा [*] मदीयान्वयभूपालचित्तारा
धनतत्परा: [॥ ३८] निजैरत्यैर्विजैः॥ प्राणै
I Read °वरात्. + Rad धन.
I Read रात्. • Read शश.
. The aksharas fat are entered below the line. • Read धान्यां जननाथ'. The akaharas शिखर are written on an erasure. . Read ou.
• Read कुटुंबि. 1. The ait is entered below the line.
11 Read ca
Page Navigation
1 ... 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482