Book Title: Dwadashparvi Vyakhyanam
Author(s): Kshamakalyan Upadhyay
Publisher: Kshamakalyan Upadhyay
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पी० द०
॥ ७० ॥
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श्रीविक्रमादित्यराज्याद्वेदसप्तरुद्र ( १९७४ ) प्रमिते वत्सरे श्रीदेवमूरि नामान: महात्मानो जाताः ते च श्री अर्बुदाचलसमीपे टेलीग्रामसीम्नि लुंकडीय नाम वटवृक्ष | स्याधोभागे श्री उद्योतनसूरिभिः प्रशस्त मुहूर्त वेलायां सर्वदेवादीन् अष्टौ शिष्यान् शिक्ष यित्वा सूरिपदे स्थापितवान् । येन च चतुराशीति वादिनां पतिः कुमुदचन्द्रोऽरि| जितः । ते चेमे चतुराशीति वादिनः । वंभ अठ्ठनव ( १७ ) बुद्ध नग ( १८ ) अठ्ठा - रह जित्तीय । सैव सोल (१६) दह (१०) भट्ट सत ( ७ ) गंधब्बवि जितीय - ॥ १ ॥ जित्त दिगम्बर सत्त (७) पुण खत्तिय ( ४ ) चार दु ( २ ) झोई । इक ( १ ) धीवर (( १ ) इक भिल्ल अरु भूमिपाड ( १ ) इकभोई ॥ २ ॥ -- इत्येषां योगेन चतुराशीति भवन्ति ।
अथैकदा श्रीदेव सुरयचातुर्मासतपश्चर्यार्थं श्री मेडतानाम्नि नगरे स्थिताः । त
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व्या०
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