Book Title: Dravya Puja Evam Bhav Puja Ka Samanvay Author(s): Bhushan Shah Publisher: Chandroday Parivar View full book textPage 5
________________ 'तेरापंथ : भावपूजा' विषय पर आ. श्री महाश्रमणजी का संबोध आर्हत् वाङ्मय में 'वंदामि नमसामि सक्कारेमि सम्माणेमि.... 'पाठ प्राप्त होता है। इस पाठ के द्वारा विनय भाव से वंदनीय और पूजनीय व्यक्ति का विशिष्ट सम्मान दिया जाता है। सामान्य सम्मान तो हर आदमी को दिया जाता है, पर विशिष्ट सम्मान सामान्य रूप से आम आदमी को नहीं, किसी विशिष्ट व्यक्ति को दिया जाता है। ऐसा सम्मान हर किसी के प्रति नहीं होता है। धार्मिक जगत में दो परम्पराएँ प्रचलित है। एक मूर्तिपूजक परम्परा, जो मूर्तिपूजा में विश्वास करने वाली है। दूसरी अमूर्तिपूजक परम्परा, जिसकी उपासना पद्धति मूर्तिपूजा के रूप में नहीं है। दोनों परम्पराएँ जैन शासन में भी प्रचलित है। जैन शासन के अनेकानेक अनुयायी मूर्तिपूजा करने वाले हैं तो अनेक अनुयायी मूर्तिपूजा की पद्धति को अस्वीकार करने वाले हैं। पूजा के सन्दर्भ में दो शब्द मननीय है-पूजनीय और पूजक। जिसकी पूजा की जाती है या जो पूजा योग्य है, अर्ह है, वह पूजनीय होता है और जो पूजा करने वाला है, वह पूजक होता है। भावपूजा को समझने के साथ-साथ द्रव्य पूजा को समझना भी अपेक्षित है - ठीक उसी प्रकार जैसे अहिंसा को समझने के लिए पहले हिंसा को समझना जरूरी है। अपेक्षित है कि हम द्रव्यपूजा को भी समझें। ____ मैंने जो निष्कर्ष निकाला है, वह यह है कि द्रव्यपूजा और भावपूजा पूजनीय और पूजक दोनों के साथ संबद्ध है। पूजनीय भी द्रव्य हो सकता है और पूजक की पद्धति में भी द्रव्यता हो सकती है। इस प्रकार पूजनीय और पूजक दोनों के संदर्भ में द्रव्य और भाव कोPage Navigation
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