Book Title: Dravya Puja Evam Bhav Puja Ka Samanvay
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

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Page 11
________________ प्रतिमा या चित्र को देखा और देखते ही परम प्रभु की स्मृति हो गई। इस प्रकार प्रतिमा या चित्र भी स्मृति का एक साधन है। जैसे नाम के द्वारा स्मृति होती है, वैसे ही रूप के द्वारा भी स्मृति हो जाती है। आकार-प्रकार को देखने से ज्यादा सरल तरीके से प्रभु की स्मृति हो सकती है। इस प्रकार नाम और रूप से भी स्मृति की जा सकती है। मेरा मानना है कोई व्यक्ति प्रतिमा की पूजा भले ही न करे, तन्मयता से नाम स्मरण के द्वारा प्रभु की भक्ति करे तो उसका कल्याण निश्चित है। धार्मिक जगत में मूर्तिपूजक और अमूर्तिपूजक दोनों परम्पराएँ प्रचलित है। जैन शासन में भी दोनों परम्पराएँ प्रचलित है। लेकिन यह स्पष्ट है कि तेरापंथ श्वेताम्बर जैन परम्परा मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं करती। हमारे पुरखों ने जो रास्ता दिखाया या बताया है,वह अमूर्तिपूजा का है। उसको हमें समझना ही चाहिए। हालांकि समझना तो मूर्तिपूजा को भी चाहिए। इससे ज्ञान ज्यादा स्पष्ट हो सकेगा। सच्चाई को समझने का प्रयास हर आदमी को करना चाहिए, फिर वह किसी भी परम्परा या सम्प्रदाय से संबंधित हो। सच्चाई सबसे बड़ी चीज है। सम्प्रदाय, परम्परा और मान्यता से भी बड़ी सच्चाई है, इसलिए सच्चाई के प्रति आस्थावान होना चाहिए। सच्चाई के प्रति आस्था है तो मानना चाहिए कि भीतर में सम्यक्त्व की निर्मलता है। तेरापंथ और भावपूजा के संदर्भ में मैंने अनेक रूपों में विश्लेषण करने का प्रयास किया है। हम मूर्तिपूजा और अमूर्तिपूजा के विषय में तर्को और आधारों को समझने का प्रयास करे।' ॥विज्ञप्ति - अंक 46 ता. 17-23 फरवरी 2013 ।। . ...00000......

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