Book Title: Dravya Puja Evam Bhav Puja Ka Samanvay
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

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Page 16
________________ होता है कि जिसका भावनिक्षेप शुद्ध है, उसके द्रव्यादि चारों निक्षेप शुद्ध होते हैं यानि विमलनाथ भगवान का भाव पूज्य एवं पवित्र है तो उनका नाम, स्थापना, द्रव्य निक्षेप भी पूज्य एवं पवित्र होगा अर्थात् गृहस्थावस्था में भी विमलनाथ भगवान पूज्य होते हैं । आचार्य श्री ने गृहस्थावस्था में विमलनाथ भगवान को अपूजनीय बताया परन्तु शायद उन्होंने जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति के पाठ पर ध्यान नहीं दिया है ऐसा लगता है क्योंकि जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति के पंचम वक्षस्कार में बताया है कि ऋषभदेव भगवान का जन्म होने पर इन्द्र ने भक्ति भाव से शक्रस्तव द्वारा स्तवना की एवं मेरू पर्वत पर हजारों कलशों द्वारा जन्माभिषेक किया। उसके बाद भी विविध पूजाएँ एवं स्तवना की । इससे तीर्थंकर के द्रव्य निक्षेप की पूजनीयता सिद्ध होती है। उसी तरह जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति के द्वितीय वक्षस्कार में बताया कि आदिनाथ भगवान के निर्वाण पश्चात् इन्द्र महाराज आदि उनके शरीर की प्रदक्षिणा करते हैं तथा क्षीरोदक से स्नान, गोशीर्ष चन्दन से लेप, वस्त्र अलंकार आदि से विभूषित करते हैं एवं अग्नि संस्कार के पश्चात् शेष रही हुए दाढाएँ एवं अस्थियों को देव यथायोग्य लेकर उनकी अर्चना आदि करते हैं । इस प्रकार आगम से हम जान सकेंगे कि चैतन्य शून्य शरीर एवं अस्थियाँ भी पूजनीय होती हैं। वर्तमान में भी मूर्तिपूजक हो या अमूर्तिपूजक, किसी भी संप्रदाय के आचार्य के देवलोक होने पर भक्तों की भीड़ उनकी अंतिम यात्रा में आ जाती है एवं उनके अंतिम दर्शन के लिए लालायित होती है। हालांकि वहाँ तो केवल मृत शरीर है फिर भी उसका बहुमान आदि करते हैं। अगर देवलोक होने वाले आचार्य बहुत बड़े हो तो उनकी अंतिम यात्रा में तो हजारों लोग देश के कोने-कोने से आते हैं एवं उनकी खाने-पीने की व्यवस्था भी स्थानिक लोग करते हैं । उनमें स्थावरकाय की एवं अयतना के कारण त्रस जीवों की भी बहुत हिंसा 12

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