Book Title: Dravya Puja Evam Bhav Puja Ka Samanvay
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

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Page 15
________________ समझने के लिए हिंसा समझनी जरूरी है, उसी तरह भावपूजा के पहले द्रव्यपूजा समझनी जरूरी है।" ऐसा कहकर के द्रव्यपूजा को भावपूजा का प्रतिपक्ष बताया है। परन्तु हकीकत यह है कि द्रव्यपूजा भावपूजा का प्रतिपक्ष नहीं है, किन्तु उपष्टंभक है। जैसे बाह्य तप अभ्यंतर तप का पूरक होता है, उसी तरह द्रव्यपूजा भावपूजा की पूरक है परन्तु प्रतिपक्ष नहीं है। द्रव्यों की दुनियाँ में जीने वाले और द्रव्य के द्वारा जिनके भावों पर अत्यधिक असर होती है ऐसे गृहस्थ जो द्रव्य का संचय करते हैं, उनके द्रव्य की मूर्छा त्याग करवाने में कारण होने से एवं भक्ति के भावों में विशेष वृद्धि का कारण होने से द्रव्यपूजा श्रावक की भूमिका तक विशेष आदरणीय है। - आचार्य श्री के संबोध के सार रूप निम्न बातें ध्यान में आयी जिन पर विचार प्रस्तुत किये जा रहे हैं - 1. द्रव्य निक्षेप पूजनीय नहीं जैसे गृहस्थावस्था में विमलनाथ भगवान अपूजनीय थे। 2. प्रतिमा चेतना शून्य होने से पूजनीय नहीं है। 3. द्रव्य पूजा में धूपदीप आदि का निषेध क्यों नहीं है ? "नामजिणा जिणनाम ठवणजिणा पुण जिणिंदपडिमाओ दव्वजिणा जिणजीवा भावजिणा समवसरणत्था।।" (16) इस श्लोक द्वारा आ. श्री ने द्रव्य विमलनाथ का अर्थ गृहस्थ अवस्था में रहे विमलनाथ किया और उन्हें अपूजनीय बताया है परन्तु यह श्लोक जिस ग्रंथ का है उसके ठीक आगे का ही श्लोक यह है : "जेसिं निक्खेवो खलु सच्चो भावेण तेसिंचउरो वि। दवाइया सुद्धा हुति, ण सुद्धा असुद्धस्स ।।"(17) यह श्लोक 1444 ग्रंथ के रचयिता, सूरिपुरंदर, आचार्य श्री हरिभद्रसूरि भगवंत रचित संबोध प्रकरण का है, जिसका अर्थ यह

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