Book Title: Dravya Puja Evam Bhav Puja Ka Samanvay
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

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Page 36
________________ निष्पक्षता से सत्य अन्वेषण तेरापंथ के आचार्य महाप्रज्ञजी ने भी स्पष्ट खुलासा किया है कि "जैन परम्परा में मुखवस्त्रिका बांधने का इतिहास पुराना नहीं है। यह स्थानकवासी परम्परा से शुरू हुआ है। मुनि जीवेजी आदि के समय से शुरू हुआ है। किंतु एक परम्परा के चलने का अर्थ यह नहीं कि हम पुराने अर्थों को ठीक से न समझें। हमें पुराने अर्थों को भी ठीक से समझना है। 'हस्तक' से शरीर का प्रमार्जन करें। 'हस्तक' का अर्थ है-मुखवस्त्रिका। मुखवस्त्रिका, मुँह पर बांधने का अर्थ नहीं है। मुखवस्त्र यानी रुमाल, जब मुनि प्रतिलेखन करें तो उस रुमाल या कपड़े से पहले पूरे शरीर का प्रमार्जन करें। मुखवस्त्रिका से कैसे शरीर का प्रमार्जन होगा? यही सोचने की बात है। हत्थगं संपमज्जित्ता' प्रतिलेखन की विधि है कि उससे पहले पूरे शरीर का, सिर से पैर तक हस्तक से प्रमार्जन करें। अब कैसे करेगा ? हम जो सही अर्थ है, उसे समझ नहीं पाते, इसलिए रूढियां पनपती है। मुखवस्त्रिका का अर्थ मुँह पर बांधने की पट्टी नहीं। आगम में कहीं भी बांधने का उल्लेख नहीं है।" (तत्त्वबोध से साभार उद्धृत ता. 01/03/04 सितम्बर 2007)

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