Book Title: Dravya Puja Evam Bhav Puja Ka Samanvay
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

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Page 14
________________ उचित है? उत्तर : श्रावक समाज की दिशा-निर्देशिका में यह लिखित निर्देश दिया हुआ है कि अन्य सम्प्रदाय के आचार्य या साधु-साध्वीयाँ कोई भी ठहरे तो स्थान देने की मना नहीं है, पर आचार्यों की फोटो को आवृत्त करना अथवा उनको उतारना स्वीकार नहीं करना चाहिये। (शिलान्यास धर्म का, पृष्ठ सं. 70, आचार्य महाश्रमणजी) श्री दशवकालिक सूत्र की गाथा “चित्तभित्तिं न निज्झाए' भी यह सूचित करती है कि स्त्री आदि के चित्रों को साधु न देखें। क्योंकि उन चित्रों से राग के संस्कार प्रगट हो सकते हैं। चित्रजगत् से मानव मन पर होने वाली असर को देखने के बाद हम देखते है कि धार्मिक जगत में इसका क्या योगदान है। • जैसे प्रिय व्यक्ति के विरह में व्यक्ति चित्र आदि रखता है, उसी तरह तीर्थकरों के विरह में अपनी कृतज्ञता एवं भक्ति प्रदर्शित करने के लिए आलम्बन जिनप्रतिमा है। भक्त अपनी भक्ति के भावों को जिनप्रतिमा के आगे प्रगट करता है और साक्षात् तीर्थकर की भक्ति का फल प्राप्त करता है। यह बात निराधार नहीं परन्तु योगग्रंथों के सर्जक, सूरिपुरंदर, 1444 ग्रंथों के रचयिता एवं अपनी माध्यस्थ दृष्टि के लिए आधुनिक विद्वानों में भी अत्यन्त लोकप्रिय ऐसे पूज्यपाद आ. श्री हरिभद्रसूरिजी ने अपने संबोध प्रकरण में कहा है कि : "तम्हा जिणसारिच्छा जिणपडिमा सुद्धजोयकारणया तब्भत्तीए लब्भइ जिणिंदपूयाफलं भव्वो।।"(18) अर्थात् मनवचनकाय के योगों की शुद्धि का कारण होने से जिन प्रतिमा साक्षात् जिन जैसी है और उसकी भक्ति से भव्य जीव जिनेन्द्र की पूजा का फल प्राप्त करता है। क्योंकि आकृति की असर मन पर होती है और मन ही कर्मबंध आदि में मुख्य कारण है। - आचार्य श्री ने संबोध में कहा कि - 'जैसे अहिंसा को *10 .

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