Book Title: Dhaturatnakar Part 4
Author(s): Lavanyasuri
Publisher: Rashtriya Sanskrit Sansthan New Delhi
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धातुरत्नाकर चतुर्थ भाग
८ अङ्कयिता-", रौ, रः। सि, स्थः, स्थ। स्मि, स्वः, स्मः।। ५ आजह्वर-त्, ताम्, न्। :, तम्, त। म्, आव, आम।। ९ अङ्कयिष्य- ति, तः, न्ति। सि, थः, थ। आमि, आव: ६ आह्वरया- ञ्चकार, इ० ।। म्बभूव, इ०।। मास, इ० ।। आमः।।
७ आह्वराया- त्, स्ताम्, सुः। :, स्तम्, स्त,। सम्, स्व, स्म।। १० आङ्कयिष्य-त्, ताम्, न्।:, तम्, त। म्, आव, आम।। ८ आह्वरयिता-", रौ, रः। सि, स्थः, स्थ। स्मि, स्वः, स्मः।।
"त्र्यन्त्यस्वरादे" ( ७,४,४३) इत्यन्त्यस्वरस्य लुग्भवति। | ९ आह्वरयिष्य- ति, तः, न्ति। सि, थः, थ। आमि, आव: अकशब्दो दृश्यकाव्यविशेषे, अङ्क इति प्रसिद्ध नाटकपरिच्छेदे, | आमः।। पर्वते, चिह्ने, रेखायां, युद्धभूषणे, समीपे च वर्तते। क्रोडे तु | १० आह्वरयिष्य- त्, ताम्, न्। :, तम्, त। म्, आव, आम।। अस्त्री।। अद्यतन्याम् अलोपस्य स्थानिवद्भावे कशब्दस्य द्वित्वे | "श्वेताश्व०" (३,४,४५) इत्याह्वरकशब्दस्य कस्य आञ्चकत्-स्थानिवद्भावाभावे तु किशब्दस्य द्वित्वे आञ्चिकत्।। लग्भवति। आशिषि-णिरूपनिमित्तापायेनिमित्तापाय इतिन्यायेन अन्तिकमाष्टे नेदयति।
| पूनरागतस्याकारस्य दीर्घ आह्वरायात्-न च अयादित्यादावपि २ नेदि-धातोरूपाणि।।
उक्तापत्तिरितिवाच्यम्, वैषम्यात्, तथाहि-अकेलापमकृत्वा
कमात्रस्य लोपविधानेन पृथगकारलोपकरणरूपप्रक्रियागौर१ नेदय-ति, तः, न्ति। सि, थः, थ। आमि, आवः, आमः।।
वेणात्रैवेदम्, एतदनादरपक्षे आह्वर्यात्।। २ नेदये- त्, ताम्, युः। :, तम्, त। यम्, व, म।।
श्लोकैरुपस्तौतीति उपश्लोकयति। ३ नेदय- तु/तात्, ताम्, न्तु। :/तात्, तम्, त। आनि, आव, आम।।
४ उप-श्लोकि-धातोरूपाणि।। ४ अनेदय-त्, ताम्, न्। :, तम्, त। म्, आव, आम।। १ उपश्लोकय-ति, तः, न्ति। सि, थः, थ। आमि, आव:, अनिनेद- तु, ताम्, न्। :, तम्, ताम्, आव, आम।।
आमः। नेदया- कार, इ० ।। म्बभूव, इ०।। मास, इ०।।
| २ उपश्लोकये- त, ताम, युः। :, तम. त। यम, व, म।। - नेद्या- त, स्ताम्, सुः। :, स्तम्, स्त,। सम्, स्व, स्म।। |३ उपश्लोकय-त/तात, ताम. न्तु।:/तात. तम्, त। आणि, ८ नेदयिता-", रौ, र:। सि, स्थः, स्थ। स्मि, स्वः, स्मः।। आव, आम।।
नेदयिष्य- ति, तः, न्ति। सि, थः, थ। आमि, आवः | ४ उपाश्लोकय-त, ताम्, न्। :, तम्, ताम्, आव, आम।। आमः।।
५ उपाशश्लोक- तु, ताम्, न्। :, तम्, त। म्, आव, आम।। १० अनेदयिष्य- त्, ताम्, न्। :, तम्, त। म्, आव, आम।। । |६ उपश्लोकया-कार, इ०।। म्बभूव, इ० ।। मास, इ० ।। __ "बाढान्तिकयो साधनेदौ" ( ७,४,३७) इत्यन्तिकशब्दस्य ७ उपश्लोक्या- त्, स्ताम्, सुः। :, स्तम्, स्त,। सम्, स्व, नेद इत्यदन्तादेशः, समानलोपित्वाच्च अनिनेदत् इत्यत्र स्म।। सन्वदादिकार्याभावः। अन्तिकशब्दः सामीप्ये सामिप्यवति च | ८ उपश्लोकयिता-", रौ, र:। सि, स्थः, स्थ। स्मि, स्व:, वर्तते।।
स्मः ।। आह्वरकं कुटिलवाक्यमाचष्टे करोति वा इति आह्वरयति। उपश्लोकयिष्य- ति, तः, न्ति। सि, थः, थ। आमि, आव: ३ आह्वरि-धातोरूपाणि।।
आमः।
१० उपाश्लोकयिष्य- त्, ताम्, न्। :, तम्, त। म, आव, १ आह्वरय-ति, तः, न्ति। सि, थः, थ। आमि, आव:,
आम।। आमः।
"न प्रादिरप्रत्ययः'' ३-३-४ इति उपस्य धात्ववयत्वाभात् २ आह्वरये- त्, ताम्, युः। :, तम्, त। यम्, व, म।।
| श्लोकि इत्यस्यादावड्विधिः।। ३ आह्वरय-तु/तात्, ताम्, न्तु।:/तात्, तम्, त। आणि, आव,
त्रिलोक्यास्तिलकं करोतीति त्रिलोकीं तिलकयति। आम।। ४ आह्वरय-त्, ताम्, न्। :, तम्, ताम्, आव, आम।।
५ तिलकि-धातोरूपाणि।।
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