Book Title: Dharm Pariksha
Author(s): Yashovijay Gani
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 6
________________ धर्मपरीक्षा प्रकाशकीयं निवेदनम् ॥४॥ ॥४ ॥ ROSHAHR "खपरमां रहेल मैत्री-प्रमोदादि शुभाशयना अखंड प्रवाहवाला अन्तःकरणस्वरूप" अध्यात्मभावमां बाधकता न आवे तेवीरीते निर्णय माटे इच्छेला पदार्थोनो निर्णय करवो तेज धर्मवाद उत्तम पुरुषो माटे कर्तव्य अने सिद्धिनुं साधन स्वीकार्यों छे, आ धर्मपरीक्षा ग्रन्थ पण ते धर्मवादना मार्गनी दिशाए गुंथ्यो छे अने बीजाओने पण ते ज मार्गे चालवा उपदेश आपे छे. प्रान्ते श्रीजिनेश्वरदेवनी आज्ञा बतावे छेके 'सर्व दुःखोना बीजभूत संसारबन्धनना मूल रागद्वेषो जेम जेम विलय पामे तेम तेम प्रयत्न करवो एज श्रीजिनेश्वर भगवंतनी आणा छे. भव्यात्माओने तत्त्वबोध माटे रचेलो आ धर्मपरीक्षा ग्रन्थ शोधवा माटे प्रसादतत्पर गीतार्थ भगवंतोनी प्रार्थना करी ग्रन्थ समाप्ति करी छे. आ धर्मपरीक्षा ग्रन्थ विवरणसमेत श्रीहेमचन्द्राचार्य ग्रन्थावली पाटण तरफथी घणा वर्षो अगाउ बुकाकार बहार पडेल छतां हाल ते पुस्तक अलभ्य जेवूछे तेमजाते आवृत्तिमा रही गएल पाठोनी त्रुटि, गाथा तथा प्राकृतपाठोना संस्कृतानुवादनी त्रुटि तेमज प्रताकार होय तो वांचनारवर्गने अनुकूलता रहे विगेरे कारणो ध्यानमा लइ आ प्रयत्न कयों छ. बनता उपयोगे ग्रन्थशुद्धि माटे काळजी रखाइ ले शुद्धिपत्रक दाखल कर्या छतां प्रेसदोष-छयस्थता विगेरे कारणे प-घ, व-ब, म-भ. विगेरे प्रायः समाकृति वर्णोना फेरफार विगेरे अशुद्धि रही मइ होय तो ते सुधारी वाचवा. तथा शुद्धिपत्रक जोइ लेवा विनन्ति साथे रही गएल अशुद्धि माटे श्री श्रमणसंघ प्रत्ये धमाभ्यर्थना छे. शुभं भूयात् श्रीश्रमणसंघस्य, CALCUCUMAUGUSUM

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