Book Title: Dharm Pariksha
Author(s): Yashovijay Gani
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 11
________________ अथ धर्मपरीक्षा-तवृत्तिगतं च शुद्धिपत्रकम् । धर्मपरीक्षा ३ अशुद्धम् मंगल हे जनके हितो म्यस्त्र मानका शुद्धम् ध्यव कत्वस्वी ध्यव रित्वे रुप स्पर्ये भिमता सर्व भगवद देना श्रण शुद्धम पृष्ठ पंक्तिः ] अशुद्धम् मार्क हे वध्य अनिके . . कस्वी । हितो ११ व्यव नकरव . १४ रिता मानाव्यवहितोत्तरका ८ रूप श्रयण स्पर्यवे व्याप्यत्वम् भिगता स्वम् सव युक्स्यो (मुक्तो) भगद भवेद् दाना वद्म १८ १३ यथा व्याप्यम् मुख युक्तो भडे . पृष्ठम् पंक्तिः| अशुद्धम् शुद्धम् पृष्ठम् पंक्तिः । शुद्धिपत्रकम् निगोद निगोदा २० . वयहा व्यवहा ४५ रत्वं तू २६ यत यतो २६१३ जोसु एगेसु १८ ते भाइ ते म १०," ", | धा यथा म धा जीवा यथा एक: सूक्ष्म १६ द्वाद द्वादश पृथिव्य-ते ते प्लेजो शाच शते च १५ मिमु भिमु CAREERCASSESSAGS बर यधा भ्रा संस रनम्ता भ्रष्ट कत्वम कम

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