Book Title: Dharm Pariksha Author(s): Yashovijay Gani Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha View full book textPage 5
________________ धर्मपरीक्षा प्रकाशकीयं ॥ ३ ॥ 66 करेला सेंकडो आगम तेमज आगम समकक्ष शास्त्रपाठोना समूहथी तेमज न्याययुक्त सत्तर्कोनी श्रेणिथी भरेलुं लगभग साडाछहजार श्लोकप्रमाण विवरण पोतेज बनावी आ धर्मपरीक्षाप्रकरणने समलंकृत कर्तुं छे. आ ग्रन्थनी सामान्य बालजीवोमां पण उपयोगिता | जाणी आपामर बालजीवोना हितनी खातर पूज्य ग्रन्थकार महोपाध्यायजी भगवंते पोतेज सविवरण आ धर्मपरीक्षा शास्त्ररूप | अमृत समुद्रमाथी सारस्वरूप उद्धार करी भाषावार्तिकरूपे समुद्रमांथी उद्भवेला बिन्दुनी जेम एक विचारबिन्दु ग्रन्थ लख्यो हे. आवात तेज विचारबिन्दु ग्रन्थना नीचे आपेला मंगल तथा प्रशस्ति श्लोकोथी सारी रीते व्यक्त थाय छे. "ऐन्द्रश्रेणिनतं नत्वा, जिनं तत्त्वार्थदेशिनम् ॥ कुर्वे धर्मपरीक्षार्थे, लेशोद्देशेन वार्तिकम् ॥ १ ॥” “एष बिन्दुरिह धर्मपरीक्षा- वाङ्मयामृतसमुद्रसमुत्थः । नन्दताद्विषविकार विनाशी, व्योम यावदधितिष्ठति मानुः || २ ||” अर्थ - "इन्द्रोनी श्रेणीवडे नमस्कार करायला अने तत्रभूत पदार्थ स्वरू|पने देखाडनार श्रीजिनेश्वर भगवंतने नमस्कार करी धर्मपरीक्षाना अर्थमां लेशथी सामान्य स्वरूप कहेवाए करी वार्तिक हुं करुं छं. १ धर्मपरीक्षाशास्त्ररूप अमृतसमुद्रमांथी उत्पन्न थयेल आ विचारबिन्दु ग्रन्थ पदार्थतस्त्रविषयक विपरीत ज्ञानरूप झेरविकारने विनाश करतो तो ज्यांसुधी सूर्य आकाशनुं अधिष्ठान करे छे तेटला कालमुधी आ पवित्र श्रीवीतरागशासनमां समृद्धि पामतो वर्तो" आ धर्मपरीक्षा विवरणमां आवता साक्षीभूत ग्रन्थोना प्राकृतपाठोनो तथा मूल धर्मपरीक्षा ग्रन्थनो संस्कृतानुवाद पण वांच| कोनी सुगमता माटे साधे ने साथै आपवा प्रयास कर्यो छे. साक्षीभूत ग्रन्थोनी नामावलि अलग सूचिरूपे पण आपी छे. तेमज आवेला पाठोनी सूचि पण साक्षिग्रन्थनाम तथा पृष्ठ पंक्ति क्रमांक साथे आपी छे. मूल गाथाओनी पण वर्णक्रमानुसार गाथांक पृष्ठांक समेत अनुक्रमणिका आपवामां आवीं छे. आ धर्मपरीक्षा ग्रन्थमां आवेला विषयनुं सर्वस्व बतावता ग्रन्थकार भगवंतना शब्दो कहे छे के निवेदनम् ॥३॥Page Navigation
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