Book Title: Dharm Deshna
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 2
________________ ग्रंथकार और ग्रंथ का परिचय / जैन जाति के उद्धार के लिये जिन्होंने आजीवन अविन्त श्रम किया, काशी जैसे क्षेत्रमें एक बड़ी पाठशाला स्थापन / अनेक संस्कृत-प्राकृत के विद्वान् तय्यार किये, मगध और ल जैसे मांसाहार प्रधान देशों में पैदल भ्रमण कर हजारों साहारियों को शुद्धाहारी बनाये, पाश्चात्य विद्वानों को सेंकडों लभ्य पुस्तकें दे कर, एवं उनके प्रश्नों के समाधान कर, यूरप मरिका में भी जैनसाहित्य का प्रचार किया, काशीनरेश, भंगानरेश, उदयपुर महाराणा और ऐसे अन्यान्य राजाहाराजाओं से मिल कर, उनको जैनधर्म की श्रेष्ठता और धर्म के सिद्धान्त समझाये, आबू के जैनमंदिरों में अंगरेज ग बूट पहन कर जाते थे, उस भयंकर आशातना को बन्द काया, गुजरात, काठियावाड, मारवाड, मेवाड, मालवा आदि न्तों में पैदल भ्रमण कर जैनों में से अज्ञाननन्य रूढियों दूर ई, जिन्हों ने एनेक पाठशालाएं, बोर्डिंग, बालाश्रम, पुस्तलय, स्वयंसेवक मंडल आदि लोकोपकारी संस्थाएं स्थापन राई, कलकत्ता युनिवर्सिटी के कलकत्ता संस्कृत एसोसीएशन की धमा, मध्यमा और तीर्थ तक को परीक्षाओं में जैनन्याय और

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