Book Title: Devi Puranam
Author(s): Pushpendra Sharma
Publisher: Lalbahadur Shastri Kendriya Sanskrit Vidyapitham

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Page 10
________________ के अन्त में किया गया था उसके कुछ वर्षों बाद इसका दूसरा संस्करण भी बंगवासी प्रेस ने निकाला | इस संस्करण में बहुत से दोष और गलतियाँ रहने पर भी इसके महत्त्व को किसी भी प्रकार से कम नहीं sोका जा सकता है। मैं श्रीयुत पंचानन जी के वयोवृद्ध (८६ वर्ष) विद्वान सुपुत्र पं० श्रीजीव न्यायतीचं जी का अतीव कृतज्ञ हूँ, उन्होंने समय-समय पर मेरा पथप्रदर्शन किया और बंगला में प्रकाशित देवीपुराण की एक प्रति प्रदान की जिससे यह कार्य सम्पन्न हो सका। उनका आशीर्वाद हर समय मेरे साथ बना रहा । - इस पुराण की पांडुलिपियों भी बहुत ही कम मिलती है और देवनागरी में तो दो-चार ही प्राप्त होती हैं जिनका विवरण इस प्रकार है। १ कलकत्ता संस्कृत पुस्तकालय (२०८) देवीपुराण, देवनागरी लिपि, तिथि अंकित नहीं है १३० अध्याय ( अन्त में लिखा है ) बीकानेर कापी से मिलता है । (क) २ बनारस संस्कृत विश्वविद्यालय पुस्तकालय (१५३०७) देवीपुराण तिथि - १६०१ - सम्वत् देवनागरी लिपि पूर्ण (ग) ३. नेपाल – देवनागरी, देवीपुराण (१६५ ४४२) राष्ट्रीय अभिलेखालय काठमांडू- नेपाल । ४ बीकानेर - महाराजा लायब्रेरी में देवीपुराण नं० (६१११. ४३३) देवनागरी लिपि । - । - ५. अन्तिम दो पांडुलिपियों की विषयवस्तु — इंडिया आफिस पुस्तकालय की बगला पांडुलिपि से - मिलती है और पन्त के श्लोक भी वही हैं। इन सभी पांडुलिपियों की सहायता से यह संस्करण तैयार किया गया है। देवी पुराण के अध्ययन की आवश्यकता मुझे अपने शोधप्रबन्ध Shakti cult in the Puranas. लिखने के समय हुई थी। केवल बंगला में उपलब्ध होने से प्रारम्भ में काफी कठिनाई आई परन्तु समय के साथ-साथ कठिनाईयां दूर हुई । अनेक पांडुलिपियां तत्तद् पुस्तकालयों में जाकर देखों और तभी से इसका देवनागरी में संस्करण निकालने का विचार बना। तदनंतर पांडुलिपियों की सामग्री का उपयोग किया और एक शुद्ध एवं प्रामाणिक सस्करण प्रकाशित करने की योजना बनी १९६०-६१ में शिक्षा मंत्रालय को प्रका शन व्यय देने के लिए प्रार्थनापत्र दिया, परन्तु यह योजना खटाई में पड़ी क्योंकि उन्होंने एक तो पांडुलिपि देखनी चाही और मैं प्रशंकावश ऐसा न कर सको। तभी सन् ६६-७० में पहले तो मुझे नेपाल जाने का सुअवसर मिला और वहाँ की पांडुलिपियों के बारे में जानकारी हुई। यद्यपि उस समय राष्ट्रीय अभिलेखालय में कुछ निर्माण कार्य होने के कारण प्रतियों का भली प्रकार उपयोग मैं नहीं कर पाया। दूसरे भारत सरकार ने उच्च अध्ययन हेतु दो वर्ष के लिये कामनवेल्थ छात्रवृत्ति प्रदान करदी और मुझे लन्दन विश्वविद्यालय में भेज दिया। वहाँ जाने पर इंडिया आफिस पुस्तकालय, लन्दन में जो देवीपुराण की प्रति सुरक्षित है उसको देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ—तदर्थ में भारत सरकार का हृदय से आभारी हूँ । भारत में लौटने पर भारत सरकार के तत्वावधान में संचालित राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के अन्तर्गत दिल्ली विद्यापीठ के प्राचार्य पद पर नियुक्ति हुई और वहाँ पर प्रकाशन सम्बन्धी योजना का संचालन भी करने लगा। संस्थान की प्रकाशन समिति ने देवीपुराण का शुद्ध एवं संशोधित पाठ प्रकाशित करने की अनुमति दी और इस प्रकार यह पुराण का संशोधित संस्करण विद्यापीठ की प्रकाशन योजना के अन्तर्गत प्रकाशित हो रहा है।

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