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प्रथम पाद-त्रैलोक्य विजय पाद में देवी का उद्भव एवं सष्टि के विकास का वर्णन किया गया है। द्वितीय पाद-त्रैलोक्याभ्युदय पाद में देवराज इन्द्र की कथा, दुन्दुभि का वध, धोरासुर का अभ्युदय, एवं विन्ध्याचल में देवी का अवतरण और उसके विभिन्न रूपों का वर्णन किया
गया है। ३. तृतीय पाद-इस पाद का नाम शुम्भ-निशुम्भ मथन है अर्थात् दोनों असुर भाइयों का
देवी द्वारा विनाश का वर्णन इस पाद में किया गया है। . चतुर्थपाद–इस पाद का कोई नाम प्राप्त नहीं होता है। इसमें अन्धकासुर के साथ युद्ध
देवासुर संग्राम और तारकासुर का कात्तिकेय के साथ युद्ध, उमा और काली की उद्भव कथा और मातृकाओं का वर्णन किया गया है। कुमार का जन्म, शंकर की आराधना, उमा
द्वारा पति को प्राप्ति, ग्रहयाग आदि का भी वर्णन है।
कुछ विद्वानों के मत में वर्तमान देवीपुराण सम्पूर्ण नहीं है। क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि प्रस्तुत . पुराण में प्रायः द्वितीय पाद की विषयवस्तु ही वरिणत की गई है। शेष. तृतीय और चतुर्थ पाद की सामग्री कहीं
और बिखरी पड़ी होगी या कभी इस पुराण का अंग रही होगी। परन्तु मेरी मान्यता इसके विपरीत है-देवी पुराण के प्रथम अध्याय में ही ऋषियों ने कुछ प्रश्न किये हैं जिनमें उन्होंने देवीपुराण सम्बन्धी विषयों पर प्रकाश डालने की प्रार्थना की है । इस सूची में जिन विषयों का परिगणन किया गया हैं वे इस प्रकार हैं:
१. घोरादि दानवों की कथा एवं विनाश । देवी की महिमा । २. इन्द्र के पराजित होने पर स्वर्ग पुनः प्राप्त करने का उपाय एवं सफलता । ३. देवी का विन्ध्य में अवतरण और उसके साठ रूपों का विवरण । ४. मातृकाओं की उत्पत्ति और रुरु दैत्य का वध । ५. अग्निस्थापना एवं अग्नि भेद आदि । ६. वसुधारा हवन की विधि । ७. देवताओं की स्थापना, मन्दिर निर्माण विधि । ८. राम द्वारा महामायासुर का वध । ६. अनेक देवी देवताओं के स्तोत्र । १०. रथयात्रा महोत्सव का संयोजन एवं विधान । ११. खट्वासुर का वध । १. देवी पु०-१३६. २. देवी पु०-१.३७-४२. ३. वही--१.४३. ४. देवीपुराण--१.४४-५२. ५. R.C. Hazra-, Studies in the Up Puranas-Vol II. P.67. ६. देवीपुराण-१.३-२६.