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कण्वाश्रम, धर्मारण्य, कावेरी संगम, कोटितीर्थ, शक्द्वीप, क्रौञ्चद्वीप, मुण्डिपीठ, विदिशा, वरेन्द्र, राधा, कौशल, भोटदेश (तिब्बत), हस्तिनापुर, कांची, कोलु, चित्रगोप, नारकाल, नीचाख्य पर्वत, उड्रदेश, स्त्रीराज्य (आसाम), चम्पा, कान्यकुब्ज, उड्डीयान, मनाक्ष, सिंहल, जम्बुकनाथ, अयोध्या, महोदय, तोरभुक्ति, अंग, बंग, समतट, वर्धमान, नेपाल, काश्मीर, गंगासागर संगम, कापोततीर्थ, नन्दातीर्थ, नन्दापुरी, त्रिकूट, रामेश्वर, अमरेश्वरतीर्थ, हरिश्चन्द्र तीर्थ, यमुना, वेलवती, रेवती, सुनन्दातीर्थ, कन्यकापुर, गया, प्रयाग, केदार, दण्डकारण्य, अमरकंटक, सोमेश्वर, नगर, पुर, खेट, गृह, भवन, मन्दिर, चतुष्पथ, आदि ।
देवीपुराण में देवी के निम्नलिखित नाम प्राप्त होते हैं : देवी, उमा, दुर्गा, आद्याशक्ति, शिवा देवी, विन्ध्यवासिनी, चामुण्डा, शक्ति, परा शक्ति, जया, विजया, अनिता, अपराजिता, शाकम्भरी, गौरी, कात्यायनी कौशिकी, भद्रकाली, पार्वती, नारायणी, भीमा, धूम्रा, अम्बिका, योगनिद्रा, लक्ष्मी, चण्डी, 'दाक्षायणी, कैटभेश्वरी, कुमारी, कपालिनी, काली, महिषासुरमर्दिनी, चर्चिका, रौद्रो, नन्दा, भवानी, तारा एकानंशा, कालरात्रि, भैरवी, नवदुर्गा, मातृका, क्षेमंकरी, मंगला, सर्वमंगला, ब्राह्मी, शात्री, कौमारी, वैष्णवी, महालक्ष्मी, श्वेता, ( महाश्वेता ) योगेश्वरी, मूलप्रकृति आदि सैकड़ों नाम उपलब्ध होते है । और ये सभी देवी के प्रसिद्ध नाम या विभिन्न रूप हैं जिनकी पूरे भारतवर्ष में आज तक पूजा होती आ रही है ।
देवी का स्वरूप :
देवीपूजा पर प्रामाणिक शास्त्र के रूप में मान्य इस पुराण में देवी प्रधानतया युद्ध की देवी या युद्धरत देवी के रूप में वरिंणत' है । वह आद्याशक्ति है और साक्षात् शिवा ही है । इसी देवी ने चामुण्डा रूप धारण करके भगवान् विष्णु के जीवन की रक्षा महामुनि कालाग्निरुद्र के कोप से की थी । चामुण्डा देवी को संसार की सृष्टि, सुरक्षा एवं संहार करने की सामथ्र्यं से युक्त बतलाया है । देवीपुराण के अनुसार चामुण्डा एक प्रज्वलित ज्वाला ही है । ( ६ / ११) दार्शनिक रूप में उसे काल (समय) की अग्नि रूप में प्रदर्शित किया है जो पार्थिव अग्नि को शान्त करती रहती है । उसका वर्णं काला है किन्तु सिन्दूर से आवेष्टित है एवं तेज की किरणें उससे प्राविर्भूत होती रहती हैं । ( ६ / १६-३४) वह सभी की स्वामिनी है; ब्रह्मा, विष्णु, महेश, देवतागण, दैत्यदानव, मानव समाज, अर्ध दैवी जातियों, पशु-पक्षि एवं सम्पूर्ण चर और प्रचर जगत् उसीके अधिकार में संचालित होता है । प्रमुख रूप से चामुण्डा संहार या विनाश की अधिष्ठातृ देवता हैं और प्रमुख रूप से श्मशान में वास करती हैं। "
आद्याशक्ति सभी की मनोकामना पूर्ण करती हैं और उसकी भक्ति करने से एक साथ ही सांसारिक ऐश्वर्य और भोग, पुण्य एवं मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है । उसको ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में कार्य करने वाली महाशक्ति कहा गया है एवं त्रिदेवों की स्त्रीशक्ति के रूप में भी स्मरण किया जाता है । एक होते.
१. देवीपु० ६ / ११ प्रेषयामास चामुण्डां कालानलसमप्रभाम् । २. वही ३. वही ६/५७
६/११.३४