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से निरन्तर घिरी रहती है । देवताओं की रक्षा करने के कारण ही देवी का नाम क्षेमंकरी पड़ा एवं अधिकतर इसकी पूजा श्राद्धपक्ष में होती है। मांस, मदिरा, स्वर्ण, मत्स्य आदि की बलि कुलमार्ग या वाममार्ग पद्धति से दी जाती है और यह देवी पूर्णरूप से तान्त्रिक है ।
दुर्गा :
देवीपुराण के अनुसार भगवती दुर्गा की पूजा गणेश, नवग्रह या शिव के साथ की जानी चाहिए । भवन निर्माण, दुर्ग निर्माण, नगर निर्माण एवं सेतु निर्माण के समय भी दुर्गा देवी का पूजन होता है ।" ( ७३ / ५८ ) वस्तुत: दुर्गा यह नाम भी ( दुर्ग की अधिष्ठातृ देवता) दुर्ग से सम्बन्ध रखता है, अतएव इस पुराण में हमें गिरिदुर्गा, वनदुर्गा प्रादि नाम भी प्राप्त होते हैं । देवीपुराण में ऐसे निर्देश भी प्राप्त होते हैं जिनमें समय दुर्गां महिषमर्दिनी की मूर्ति स्थापित की जानी चाहिए । दुर्ग का की जानी चाहिए एवं द्वारों का नाम करण भी देवी के नामों पर
कहा गया है गोपुर का निर्माण करते निर्माण करते हुए बलि भी प्रदान किया जाना चाहिए।'
दुर्गा देवी के अनेक रूप बतलाये गये हैं, फिर भी वह एक है । उसकी भुजाएं भी कभी दस, कभी आठ कभी चार और कभी १८ भुजाओ वाली भी बतलाया गया है । दुर्गा का वेदान्त के ब्रह्म के साथ एकात्म्य स्थापित किया गया है। कई स्थानों पर देवी को काल - अर्थात् रुद्र से जोड़ दिया गया है। अर्थात् शिव की संहारक शक्ति का नाम हो काली है और उसीसे ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं की उत्पत्ति बतलाई गई है" । देवी को कभी देवताओं की शक्ति या देव पत्नी कहा गया है और साथ ही साथ उनको नियन्त्रण कर्त्री शक्ति होने के कारण वह देवमाता भी कहलाती हैं।
साहित्य :
देवपुराण में संस्कृत साहित्य की विभिन्न विधाओं; विद्यात्रों एवं शास्त्रों के बारे में महत्वपूर्ण प्रमाण उपलब्ध होते हैं । इतिहास; काव्य, नाटक, श्राख्यायिका, ज्योतिषशास्त्र, प्रायुर्वेद शास्त्र; वीणा शास्त्र आदि का उल्लेख मिलता है। इसके अतिरिक्त देवी शास्त्र का पुनः पुनः उल्लेख मिलता है जिससे ज्ञात होता है कि देवीपुराण के निर्माण से पूर्व ही देवी सम्बन्धी साहित्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो रहा था । ऐसे पुराणों का भी उल्लेख है जिनमें देवी का वर्णन है अर्थात देवी पुराण के अतिरिक्त अन्य पुराणों में भी देवी सम्बन्धी सामग्री मिलती थी। इसी प्रकार एक स्थान पर 'पौराणिका देव्यः' पद का प्रयोग किया गया है अर्थात् पौराणिक और तान्त्रिक देवियों को पृथक् २ रूप में स्वीकार कर लिया गया था ।
१. देवीपुराण ३६ / १३०-१७९
२. वही ७३ / ५८
३. वही
४. वही
५. वही
६. बही
७२ / १२४-१२७
६ / २३-३१ सप्तशती १० / २
८१ / ४-१२
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