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मन्त्र विद्या :
देवीपुराण अनेक योग मन्त्रविद्याओं का वर्णन करता है। कामिकाविद्या, पदमाला, अपराजिता मोहिनी, मृत्युजय आदि अनेक विद्याओं का वर्णन प्राप्त होता है। इन विद्याओं के प्रयोग से एवं सिद्धि करने से केवल मात्र अणिमादि सिद्धियों ही प्राप्त नहीं होती हैं अपितु मोक्ष की भी प्राप्ति हो सकती है। प्रस्तुत पुराण में गुरु को भी बहुत ही आदर दिया गया— देवताओं से भी अधिक यह तन्त्रों का प्रभाव है या तन्त्रों पर इस पुराण का प्रभाव है; यह अभी निर्णीत होना शेष है ।
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पूजा पद्धति पर भी तन्त्रों का प्रभाव इस पुराण में देखने को मिलता है । तान्त्रिक प्रक्रियाएँ, तान्त्रिक मन्त्र, मुद्राएँ; न्यास एवं योग आदि का उपयोग प्रचुर मात्रा में किया गया है। पूजा में एवं अन्यत्र भी साधक द्वारा मांस और मदिरा का सेवन भी परिकल्पित किया गया है। देवी सम्बन्धी सभी उत्सवों एवं व्रतविधानों में कन्याओं का पूजन और भोजन बहुत ही आवश्यक अङ्ग होता है। पूजा के माध्यमों के रूप में . प्रतिमा, वेदी, खड्ग, त्रिशूल, चक्र, पद्म, पुस्तक, लिंग, पादुका. पट, छूरिका, बारण, जल, अग्नि, हृदय, चित्र एवं धनुष आदि को स्वीकृत किया गया है।
स्त्री :
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देवीपुराण स्त्रियों एवं दलित वर्ग के लोगों को बहुत ही उदारतापूर्वक समाज में एवं धार्मिक कृत्यों में उचित स्थान देता है। यह पुरण केवल मात्र शूद्रों; चाण्डालों, आदिम जातियों को देवी व्रतों का विधान करने की ही आज्ञा नहीं देता है अपितु विद्यागुण सम्पन्न शूद्र को गुणरहित द्विजाति से श्रेष्ठ भी स्वीकार करता है । स्त्रियों, और शूद्रों को देवी सम्बन्धी हवन, व्रत, उपवास, पूजा, जप आदि करने की पूर्ण स्वतन्त्रता दी गई है ।' कन्याओं को देवीस्वरूपा मानकर प्रत्येक उत्सव में उनके पूजन सम्मान व भोजन की व्यवस्था की गई है। विवाहिता स्त्रियों को भी काफी सम्मान प्रदर्शित किया हैं।" यहां तक कि कई अवसरों पर उनके पूजन और
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१. देवीपु० - १.२१, ६३-६४ २.१ ९.४-१-५६; ११.४-१५. २. वही. १.६८. ३९.४९ ६८ - १२१-१२३.
५०. ३३४ - प्राचार्य का आदर ।
३. वही. ८१.१९:
४. वही. ६.७१.
५. वही. २२.१०
६. वही. २२.५-६१. २४.१६-२४. २६.४३-४६.
७. वही. ५१.४-६.
८. वही. २२.१६ ४०.३३५-३३७.९३.१६०-१७२,
६. वही. १२१.५
१०. वही. ३५.१५-१७ कन्या देव्या स्वयं प्रोक्ता कन्यारूपा तु शूलिनी ।