Book Title: Dev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Author(s): 
Publisher: Muni Manisagar

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Page 5
________________ . .यह प्रथम पत्र हीरालालजी जिन्दाणी, पंचमलालजी बोरा, गंदांलालजी डेसी, माणकचंदजी राठोड, कनैयालालजी रांका, मांगीलालजी कटारीया और. अमोलकचंदभाई के साथ भेजा था. " ...... दसरे पत्रकी नकल... - श्रीमान् प्रताप मुनिजी योग्य अनुवंदना सुखशांता वंचना. श्रीमान् विजयधर्म सारजी इन्दोर आ तब शास्त्रार्थ में संस्य ग्रहण करवाने की संही जलदी से भिजवाना, सही आनेसे मैं रतलाम से इन्दोर ५-६ रोजमैं पहुंच सकूँगा, आप वहां ही ठहरना. संही विना शास्त्रार्थ होता नहीं कमजोर को सही करना मुश्किल होता है इसलिये ‘अन्य बातों में विषयांतर करता है, यह तो आप जानते ही हैं, विशेष.क्या लिखें. संवत् १९७८ मागसर शुदी १.२, मुनि-मणिसागर, रतलाम, . . - यह दूसरी पत्र धनराजजी और जुहारमलजी रांका के साथ भेजों था, यह उपर के दोनों पंत्र श्रीप्रतापमुनिजी मार्फत इन्दोर आये · तंब उन्होंको पहुंचाये गये, जिसपरभी "माणसागर की शास्त्रार्थ करने की इच्छा नहीं है, इसलिये इन्दोर नहीं आता" इत्यादि झूठी झूठी बातें मेरे लिये फैलाई. तब मैंने एक हेडविल छपवाया था, वह नीचे मुजब है, .. देवंद्रव्य संबंधी इन्दोर में शास्त्रार्थ. . श्रीमान-विजयधर्म सारंजी ! मेरी तर्फ से महावीर पत्र के अंक १६ वे में और जैन पत्रके अंक ४७ में लेख छपा है, उस मुजब देवं द्रव्य संबंधी शास्त्रार्थ की सभा में जो सत्य निर्णय ठहरे सो उसी समयं अंगीकार करने की व जिसकी प्ररूपणा झूठी ठहरे उसको उसी समय सभा में मिच्छामि दुक्कडं देने की आप प्रतिज्ञा करिये, मैं, इन्दोर शास्त्रार्थ. के लिये आने को तैयार हूं. यह बातं.धूलिया, सीरपुर और मांडवगढ के रजीष्टर पत्रों में आप को लिख चुका हूं और महावीर व जैनपत्र में भी

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