Book Title: Dev Dravya Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Naya Jain Mandir Indore

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Page 7
________________ छप चुकी है, इसलिये मणिसागर की शास्त्रार्थ करने की इच्छा नहीं है उससे इन्दोर नहीं आता इत्यादि बातें करना सब झूठ है। यह विवाद आपनेही उठाकर जैन समाज में चर्चा फैलायी है, उस से हजारों लोग संशय में गिरे हैं, और देव द्रव्य में बड़ी भारी हानि पहुंचने का कारण हुआ है, इसलिये इस शास्त्रार्थ में आपकी सही बिना कोई भी लेख प्रमाणभूत माना जावेगा नहीं, और इसके लिये आपको जियादे भी ठहरना पडेगा मगर विहार करने के बहाने शास्त्रार्थ को उडा सकते नहीं. विहार तो जन्मभर करना ही है धर्मकार्य के लिये जियादा ठहरने में भी कोई दोष नहीं हैं. आपकी प्रतिज्ञा पत्र में सही होनेपर शास्त्रार्थ का दिवस मुकरर होनेसे बहुत साधु-श्रावक इस शास्त्रार्थ में शामिल होने के लिये इन्दौर आने को तैयार हैं, इसलिये अगर अपनी बात सच्ची समझते हो तो सही करने में कभी विलंब न करेंगे या झूठी समझ करके भी अपनी बात जमाने के लिये उपर से हां हां करते हो और अंदर से इच्छा न होनेपर झूठे झूठे बहाने बतलाकर शास्त्रार्थ से पीछे हटना चाहते हो तो - अपनी प्ररूपणाको पाछी खींच लेनाही योग्य है, नहीं तो सही करिये. यह विवाद सामान्य नहीं है, इसलिये सुहीपूर्वक न्यायसेंही होना चाहिये. इति शुभम् । सं० १९७८ पौष वदी ३. मुनि-मणिसागर, रतलाम. - इस हेडबिल को रजीष्टरी से उन्होंको भेजा गया था ( उसकी पहुंच आगई थी ), और इन्दोर, रतलाम वगैरह शहरों में भी बांटा गया था, उसपर भी उन्होंने इस हेंडबिल का कुछ भी जवाब नहीं दिया मौन कर लिया और धूलिया, सीरपुर, मांडवगढ के तीनों पत्रों में, व श्री प्रतापमुनिजी वाले दो पत्रों में और उपर के हैंडबिल में साफ खुलासा लिखा गया था, कि " शास्त्रार्थ की सभा में सत्यग्रहण करने

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