Book Title: Desi Shabda Sangraha
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: University Granth Nirman Board

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Page 943
________________ ૧૭૪ पडल-पडल-पटल । पट्+अल । पट् गतौ । “पटलं छदिः" (G||० ४१५) अभ२०, अमि० यि., अने० स०, ० लि., वि० प्र० । पच्चूह-पच्चूह-प्रत्यूष । प्रत्यूषाण्ड-सूर्य. अमि० ५ि० शे०. ८।२।१४। पहण-पहण-प्रधन । पउअ-पउअ-शतः (प्रोदय-प्र+उदय- अ प भूयन य य य ते સમય–ભાષામાં “પ ફાટવી” पहणि-पहणि-प्रहणि । गा० ४६८-पयला-पयला-प्रचला । पयय-पयय-प्रयत । पडवा-पडवा-पटवाह । पटं वहति पटवाहः-४५ने धारण ४२ ते ५७वाल. पटवास-पटस्य वासः निवसनस्थानम्-तप्पू कोरे. पहिय-पहिय-प्रथित । पसिय-पसिय-प्रसीद । प्रसीदन्ति लोका येन तत्- 2 पर सो मुश थाय ते प्रसी६. प्र+सी+अ । (१०) पड्डस-पड्डस-बद्धांश । गा० ४६९-पणिय-पणिय-पणित । प्रकटित-पयडिअ-पणिय-(पृष!०) । परिह-परिह-परिघ । पणअ-पणअ-पनक । पन्+अक (30 33) । पन् भक्तौ अथवा पन् व्यवहार-स्तुत्योः । पयल-पयल-प्रतल । प्रकृष्टं तलं यस्य सः प्रतलः-नुतण भरभूत छे ते. पइन्न-पइन्न-प्रचीर्ण । प्रचीर्ण-अन्या२ पासु-५३४. प्र+च+त । चर् गतौ भक्षणे च । पेढाल-पेढाल-पृथुल । पेज्जाल-विपुल-(पृष।०) गा० ४७०-पडीर-पडीर-प्रतीचर । प्रतिकूलं चरति यः सः- प्रतिस याय२५५ अरे ते प्रतीचर-पडीर-थोरनु टाणु-स२पावे।-पाटच्चर । पंखुडी-पंखुडी-पक्षट । (पक्ष+ट) 'ट' स्वार्थि प्रत्यय छे. परक्क-परक-परख । प्ररखति गतिशीलो भवति यः सः प्ररख:- गतिशास दाय त प्ररख-परक । रख+अ । रख् गतौ । . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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