Book Title: Dasvaikalika Sutra
Author(s): Swayambhava,
Publisher: ZZZ Unknown
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तंबा पतंगबा
ऊधुंवा पवि जिंके वा
दस्ते नवा कदे नवा
बाद मेमबा
नरप्रदेशेनानरप्रदेशेन
वाणासकीचा प्रयंगेचा ॐठेवा। पिवीलयेवा हये सिवा| पायसिना। बाऊंसिवा। नमरेशवाद
व सीपन वा वनवा पदगलेशाबा 'कंबलेल
पादकेनवाज रजोर होम वा
नवा
अंगके
वासी सिवा यचेशिवाय डिग्गदे सिवा केबले शिवापायच शिवारयह रणसिवा उत्तगे शिवा
नवा अंगकेन वा मात्र केनवा फलकेन वा सियायाना संस्वारकेन वा अन्यतानव नद्या प्रकारणपगरण समू
उडशिवापटसिवा फळगे सिवा सिद्यसिवा संघारशिवान्नयो सिवा तरुण गारव
नाय
ततः संयतः सततः नापर प्रतिलेषच चुकानछनः समाखन स्पर्शरूपणी माना वापमा ज्यरमनोहर लादिनाद एन प्राप्य कडधान वाजप परिक्षा जाताना डिजल दियशणमधियशयगत प्रणिद्या। नोणे संघायमा विद्या ६
Ε
श्रश्रुप्ररुः शिष्य प्रतिः ॥ प्राणस तानिप्राद्री या दिनाने एके दीयां दयानि स्वयं स पापकर्मव नितान्पाप कर्मासनस्य कटुके फलं सवति श्रतिनाति यसमा विचर
अजयचरमा एमाया रास त्याए हिसी बेधईपाचयेक मानासहोइक मुथफले। शत्रजयंविठ
राणानिनिम्ति बायकुचना ग्रामी निसारण दिऊर्वन् प्रान्ता निरुन स्लि०३ श्रयतं स्वय का शय्यादिना शायनि
गोपासूया राजयं आसमाणपत्याई
अयतेनुं जानो नित्रायो युनबिड अर्थाने साय निष्टुर जाताना माछ
वसिषा गुरुप्रातः ॥ कसे बराममिं
जानि
निस्त
अजय संजमा गोया पाया गया अयंज्ञासमा गोश्रपाद्य के दचारक देचिष्ठ कदमा मे
४
राजयं सयमा खोड पाप ।४ ।
'कवायाास्त कं

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