Book Title: Dasvaikalika Sutra
Author(s): Swayambhava,
Publisher: ZZZ Unknown
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ऋत समाधी
C श्रम तपर्धा नवतिश्वतुमिश्वयेन नय समाधिर्भवति तद्वघा नवरह जो कार्मः तबक दिव्यांज यातपो श्रतिथिति
त
शिशा तनुमुद्यसमा दिपान। चन विज्ञातव सामादी सव | संजदा । मोइद लोग हियापत्तनम दिविज्ञा
नवजन्मांतरे परलोकार्ये राजा दिनु सर्वोबादितपो अद्वितिले नवकर्त्ति शिवशश्लोकार्थः न बेोबर्या तपनपितिले त नान्यनू निर्जरार्धय को कर्मालिनि नोपरलो गहियाए तव महिहिता नो किश्चिन्नसह सिलोग छिर्रयाए। त्तचमणानन्त निरयाणव
शविरादाय का मसन्तपनकुर्यान् व
नवचित्रक
१० विवध योजनःनि
सचतिभिरामो अनिदाननिराम न
भदिद्विजा। चमवेषये नव। सवईत्तत्र सिलोगो । १ विघद अपतवेशानां राव निशसम निक साधुना तिज्ञेपयशिप एकदिक कामिनी की सर्व काम कोयमः अर्ध दिशा मुकोश ०११) वर्ज चिश्तुनिश्वयेन श्रावाभास ज्ञानव्यापिलोक कमुक्त सदात्तय समाधानसमाधाना तिवसा झुरा लपावगं तो सयानवसमा दिय। शचमिक्षा खनुआयार सभा व्हीलवर संघात श्लोकार्थयोर्धावान नकआायात नचपर लोकार्धाचरं नचकी शिवारात्री लोकाश्राचारंनानिष्टेत् तेजदा ॥ नाइलोग छियाग्रमदिहिया। नोपरतोगडियापचयारमण नो कित्तिद्दिस लोगठिया कर्यात् १२ निः श्रनाश्रवयादितिः श्राचारमूलोत्तर : रुपंधित पश्वानं निवत पयारमा १२ ननचारिांत दहन दियायाचचचेण्यं सवइति भिलोग।१३। जि जिनवचनरतः श्रतिसत किं चिररक्त इश्वर्यातयो वक्ति प्रविशनि वादिनाश्रयतमनायामाः रूपी आचारयः समधिस्तेन सं वृतिशतादियमपालयतिय नाश्रा श्रवधार त्यर्धनच विदो न जीवम्य स्वाप्ता विकीता श्रवन पालयत्तियः स्वता वोमोस हासे हे इति नाव परियचतितिये।। यडिन्नायप माय प्रिय। श्रयार समा हिशेबा | लवईत्तादनावरमध्य१४॥
क१॥
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