Book Title: Dasvaikalika Sutra
Author(s): Swayambhava, 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 35
________________ ध्रुव बाउ काय समुदीरयतिष्यानिन यापरिदिनेचितः तस्मादित्यादि चैवन्दो दुर्गतिवर्धन या काय समारं तं जावजीवे विवर्जयन् 80% वनस्पति नहिं नोबान बुरे निजिये परिहरतीय पतनादी संगवान काय संभारे शेजाव जीवरायव संति-मनसा वाचा कायेन विनयेनत्यादिप्तर्वन २४१० वनस्पतिविर्फ सनूत्यादि सर्वत्र ज्ञेयमतितिर्धनमा दोबेत्यादि नस्पतिसमार जावजी वे विव ईवलय से विपानेन यस जात्रा "संयता सुसमाहित रसम से त्ति मरण सा ४१ वसा साई विदिशति हिंसा ४शतम्॥ दोसंगवशाखा ईमारे शाजा मकान दिति मनसा वाचसा कार्यसादिसंयतासघुमाधिर्वतः कविता निस्ति तदाश्रितामा रबिना सुषा 12 जी०/४३शतसका मासा, विविदेण संजयात कार्य विदंसेतिहिंस017 से 01/ पानमा दोष तद्वनं का समान विचारल्या श्रमारादीनि नानूदिव चरकुसेापावह्माणंदो तर काय जान जीव०४६ जचत्तारिमुंडास पादारभारी संयमं श्रतपाल ३ 89 प्रिंहं सिय्या चात्रं च कल्पिन जीय वास्तु विद्यतो जमेऋणय लिया। सिचवचेच च पायमिवयाकपियनसि प्रतिगृहीयात्साधनमग्ोिति की मंत्र देसिक अस्पारनंतत्र स्वावर जीवावर्धते समाज जारिगादिकपियोधन न निश्रागममाये तिकीटस देशिश्राहम वहते समरणागति इयत्तेम ति प्रतिवेति मतिमात्मनपाला दीनी तानित्रदेशिकानि श्रयाता निरवतिविमानमान निशधर्मजी विनिसाधकर श्री सिथ्तवरिणा रहसि गाणे ह्यासंगपागाई की यमुद्दे शिश्राहम वद्ययेतिवियत्रणागोनिग्गेघाधम्मजीव 20 VASARA SEXPE

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