Book Title: Dasvaikalika Sutra
Author(s): Swayambhava, 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 39
________________ विश्राभादिवाकारिष्यसि ५० यम्मान एवं तस्मान् वयं त्यो अन्यत्रगमिष्यामि श्रमुकं वा कार्यत्तविष्यसि अहंवादं कृतकरिष्यामि एवमाभुविश्रामणा दिवाक ए कि जो वाणिखह्मागतमविश्वमिमुत्तम। ॥दिवारों के रिम्ना मिसोघाांक) व काले विसंचिताकाले विषाकिता घरादा मंत्रालयातोऽपि नावायरस का पिसि ६ । इत्येवमाद्याया भाषावासी विश्रात्ममाही महिना देन नविन रिम्स ई। ६। पत्रमाई नाजन्तामायस काले मिस किया। सपया ईयमा गतिविधी विदाई यमि) पने वर्तमानकाले अनागतेच चकालमियण्यन्तमगोगया जमद्वेव जाणिता पवामयति नावये असंखा लावत ए म्यानएवमेव इति नवेदे पानी का ने यत्र का स्थान समाः माश्रित्य मेननवदेन तीन वर्तमान कालेानागते च निसंकट कारनं स्पान्यं इति निहीनयान १० तखेव निष्टु रमेयेतिनोव एअईये पचपन्नमणा गया निखोकितवे जब एवमेयतिभिद्दास |१| तदेव सान्तोष घातिनीष्टव्यादिजीवघातिनी माविमा साधानवव्या पापस्पश्रागमनवत 13) तमेव एकाक्ष कालोऽसोऽतिनव फसाफ सोफी सौ. अरु सूनवधायगी। सच्चा विज्ञानवत्राजन पावरा श्रागम ११ नादव का क परुकेनसको भकति कुरा दिव्या मयुरुकुष्टी इति स्तनी विरायाभितिनवदेन १२) एतेन श्रन्येन न 'परोअन्याएन वा कोयते श्रावार नाव दोषज्ञ त्रिपि उगतिर्वावादिवादारागत्ति तिचंवचीर तिनीम्॥ १२॥ एएान्ना/पारा नतदसावेतावान् १३ बोल गोल फेजारता जातः स्वानो बावसु लोहरव प्रवदखती श्राथारतावदेशिन मत्तं तासिद्यपन्न शितादवलौदोगोल तिसावा 22

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