Book Title: Dasvaikalika Sutra
Author(s): Swayambhava, 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 23
________________ ४) तदतिद्घारयेत्रदद्यान् श्रमषार्धेन निसिने दायको नान्माई दे देती प्रतिजनमे कन्यानं पान करवा स्वादिमंत्र स्वादिमंध घा पातं चझिदियेदिद्या सम । एवदावर्ण । दितीये डिप४६स पारागेवाविवाश्मे साइमं नवे पानं श्रपामरवा दिये ३ स्वादिमंय शामी या न्या ज्ञानीयवदाना तदा । जेना शिक्रमुणि ज्ञावादापरं ||४| तंतवेत्त्रपा४८ असा या । नापगडं इमे । निवेतनातून पानादि खादिम स्वादिमयानी यात मी पर्याप्रत नंदे (५२ दसम्बरदेवन्नादिज्ञया नातिन मलाई सा तसादसत्र 101सयासंग विपमिठायगड इमे (५१)तं सवे स |रासस०] सम नंदनदरवेन नायमान कर्मवीर किमेव आतंरग्रामादे अकवार्धता ग्रहणे हागडे इमे ते तावत्ततया शोधावाइ सियं की गडे । १ईक मोचग्राद डोरपा धनः प्रदेष रूपं धमित्येमा धर्ममा विदान नरुमंसेन स्वत्रांकित त्यत्तिका दिन नावाचा निसंक दिन एवं साधु मिश्रनुबई का मनयदर्शक चन्यमतितच मित्रोमीस जायं सवजगामाज्ञा कसावाकडे सुज्ञानि सांकियसाप "तिमिनीथापसन पानादि स्वायमेरू साइमं सुष्मा दिशिरुन मिग्रॅ बजे सचिनेर लोर्वा मित्र दवे नत्यादि डिगादिसंघ प्रमाण खाईमसाइ मी बीएस दरि वापरावे ५८ अशना दिखादिम स्वादिभण उदके पानी मेंनिरु श्री अनंतर परं पवन गनकेश की टकाने गर मदनवेत्यादि मनाना दिलवा म स्वाम पाया। श्रश्वा इमे उदगमितदाभिच्चे, उत्तंग पेशा सेवा पूतावास या वाइ १२ प्र

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