Book Title: Dash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak Author(s): Deepchand Varni Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia View full book textPage 9
________________ [ ५ ཡཱང་ཡ། ་་ ངས ་ནས་ ན་ཡང ན མའ། བ་ ་་ कह सकते हैं क्योंकि यथार्थ में सुख अपने आत्मस्वभावको प्राप्त होने को कहते हैं, और ज्योंही यह स्वभावसे च्युत होकर परभाव अर्थात् विभाव भावको प्राप्त होता है कि यह तुरन्त दुःखी हो जाता है । तात्पर्य उपर्युक्त कथन से यह निश्चित हो चुका कि क्रोधभाव आत्माका स्वभाव नहीं, किन्तु वह पर पदार्थोंके संयोग से उत्पन्न हुवा विभाव भाव है, इसलिये ये भाव जीवको केवल दुःखके देनेवाले हैं । उत्तम क्षमा सुख प्राप्त करना जीवमात्रको अभीष्ट है । इसीलिये प्राणीमात्रको चाहिये कि चिपधरके समान भयंकर और प्राणघातक जानकर इस क्रोधको छोड़ देवें और उत्तम क्षमाको धारण करके सुखी होवें । यदि यहां यह शंका उपस्थित हो कि क्षमासे पारलौकिक(मुक्ति) सुख मिल सकता है, किन्तु संसारी सुख तो नहीं मिलता ? तो उत्तर यह है कि यह क्षमाभाव मुक्ति सुखका तो हेतु है ही किन्तु सांसारिक सुखका भी एक प्रधान हेतु है । देखो, लोकमें कहावत है कि बनिया सबसे मोटा होता है, क्योंकि वह गम् खाताक्षमा रखता है और क्षत्रिय दुबला होता है, क्योंकि वह सदा बात में क्रोधित हो जाता है। कहा भी हैकोपः करोति पितृमासुजनानामप्यप्रियत्त्रमुपकारिजनापकारम् । देहक्षयं प्रकृतकार्यविनाशनं च, मत्वेति कोपवशिनो न भवन्ति भव्याः || - सुभाषितरत्नसन्दोह | अर्थ — क्रोध से मातापितादि स्नेही पुरुषोंका अप्रिय, उपकाPage Navigation
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