Book Title: Charnanuyog Praveshika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 10
________________ चरणानुयोग-प्रवेशिका उ०-शल्य कहते हैं कील कांटे को। कोल कांटेकी तरह जो बातें मनुष्य के मन में पीड़ा देती रहती हों, उन बातों को भी शल्य कहते हैं । १९. प्र०-शल्य कितने हैं ? उ.-शल्य तीन हैं--माया, मिथ्यात्व, निदान । २०. प्र.-निःशल्य किसे कहते हैं ? उ०-जो इन तीनों शल्यको हृदयसे निकाल देता है उसे निःशल्य' कहते हैं । अर्थात् जो मायाचारसे दुनियाको ठगनेके लिये व्रत धारण करता है, या जो मिथ्याश्रद्धान रखते हए व्रत धारण करता है, अथवा जो निदान अर्थात् भविष्यमें भोगोंकी प्राप्तिको इच्छासे प्रेरित होकर व्रत धारण करता है वह व्रतो नहीं है, ढोंगी है। २१. प्र०-अणुव्रत किसे कहते हैं ? उ०-हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रह्म और परिग्रह इन पांचों पापोंके एक देश त्यागको अणुव्रत कहते हैं। २२. प्र०-हिंसा किसे कहते हैं ? उ०-प्रमादके योगसे प्राणोंके घात करनेको हिंसा कहते हैं। २३. प्र०-प्रमादका योग नहीं होनेपर हिंसा होती है या नहीं ? उ०-जिस मनुष्यके अन्दर प्रमादका योग नहीं है और जो सावधानता पूर्वक प्रवृत्ति करता है, उससे प्राणोंका घात हो जानेपर भी वहाँ हिंसा नहीं होतो और जिस मनुष्यके अन्दर प्रमादका योग है उससे किसी जोवका घात हो या न हो, वहाँ नियम से हिंसा है। क्योंकि जिस जीबके भावोंमें हिंसा है, वह नियम से हिंसक है । अतः आत्मामें रागादि विकारोंका उत्पन्न होना हो हिंसा है और उनका न होना ही अहिंसा है । २४. प्र-हिंसाके कितने भेद हैं ? उ०-दो भेद हैं-एक संकल्पी हिंसा और दूसरो आरम्भी हिंसा। बिना अपराधके जान बूझकर किसीको हिंसा करनेको संकल्पो हिंसा कहते हैं और कृषि आदि आरम्भसे होनेवालो हिंसाको आरम्भी हिंसा कहते हैं। ___२५. प्र० --हिंसासे जो बचना चाहते हैं उन्हें सबसे प्रथम क्या करना चाहिए? उ०-उन्हें सबसे प्रथम मद्य, मांस, मधु और पांच उदुम्बर फलोंका सेवन छोड़ देना चाहिए। २६. प्र०--मद्य-सेवन क्यों बुरा है ? उ०-मद्य (नशा) मनकी विचार-शक्तिको कुंठित कर देता है और Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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