Book Title: Charnanuyog Praveshika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 49
________________ 'चरणानुयोग-प्रवेशिका ३२४. प्र० - धर्म अनुप्रेक्षा किसे कहते हैं ? उ०—-धर्मके स्वरूपका चिन्तन करना धर्म अनुप्रेक्षा है । ३२५. प्र० - अनुप्रेक्षा से क्या लाभ है ? उ०— ० - अनुप्रेक्षाओंकी भावनासे साधु उत्तम क्षमा आदि धर्मोका पालन करने में समर्थ होता है और परीषहों को जीतने में उत्साहित होता है । ३२६. प्र० - परीषह किसे कहते हैं ? उ० - शारीरिक और मानसिक पीड़ामें कारण भूख-प्यास वगैरहकी वेदनाको परीषह कहते हैं । ३२७. प्र० – परीषह कितनी हैं ? उ० - परीषह बाईस हैं- क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, दंश-मशक, नाग्न्य, अरति, स्त्री, चर्या, निषद्या, शय्या, आक्रोश, वध, याचना, अलाभ, रोग, तृणस्पर्श, मल, सत्कार - पुरस्कार, प्रज्ञा, अज्ञान और दर्शन । ३२८. प्र० - क्षुधा परीषहजय किसे कहते हैं ? उ० – अत्यन्त भूखकी पीड़ा होनेपर भी धैर्य के साथ उसे सहना क्षुधा परीषहजय है । ३२९. प्र० - पिपासा परीषहजय किसे कहते हैं ? उ०- प्यासकी कठोर वेदना होते हुए भी उसके वश में नहीं होना पिपासा परीषहजय है । ३३०. प्र० - शीत परोषहजय किसे कहते हैं ? ४२ उ०- - शीतसे पीड़ित होनेपर भी उसका प्रतीकार करनेकी भावना भी मनमें न होना शीत परीषहजय है । ३३१. प्र० - उष्ण परीषहजय किसे कहते हैं ? उ०- ग्रीष्म ऋतु आदिके कारण गर्मीका घोर कष्ट होते हुए भी उससे विचलित न होना उष्ण परीषहजय है । ३३२. प्र० - दंशमशक परोषहजय किसे कहते हैं ? उ०- डॉस, मच्छर, मक्खी, पिस्सू वगैरहके काटनेपर भी परिणामोंमें विषादका न होना दंशमशक परीषहजय है । ३३३. प्र० - नाग्न्य परीषहजय किसे कहते हैं ? उ० - माता के गर्भ से उत्पन्न हुए बालकको तरह निर्विकार नग्नरूप धारण करना नाग्न्य परोषहजय है । ३३४. प्र०- - अरति परीषहजय किसे कहते हैं ? उ०- संयमसे अरति उत्पन्न होने के अनेक कारण होते हुए भी संयममें अत्यन्त प्रेम होना अरति परीषहजय है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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