Book Title: Charnanuyog Praveshika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 52
________________ ४५ चरणानुयोग-प्रवेशिका परोषहके नष्ट हो जानेसे उन्नीस परीषह होती हैं। दसवें, ग्यारहवें और बारहवें गुणस्थानमें उन्नीस परीषहोंमें नाग्न्य, निषद्या, आक्रोश, याचना, सत्कार-पुरस्कारको छोड़कर शेष चौदह परीषह होती हैं। घातिकर्मोंका विनाश होनेसे अनन्तचतुष्टयके धारी सयोगकेवली भगवान्के यद्यपि वेदनीय कर्म विद्यमान हैं फिर भी घातिकर्मों के बलकी सहायताके बिना वेदनीयकर्म फल देनेमें समर्थ नहीं होता। अतः तेरहवें और चौदहवें गुणस्थानमें परोषह नहीं होती। ३५४.३०-चारित्र किसे कहते हैं ? उ०-जिन कामोंके करनेसे कर्मोंका बन्ध होता है उन कामोंको न करनेको चारित्र कहते हैं। ३५५. प्र०-चारित्रके कितने भेद हैं ? उ०-चारित्रके पाँच भेद हैं-सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यात । ३५६. प्र०-सामायिक चारित्र किसे कहते हैं ? उ० --समस्त सावद्ययोगका अभेदरूपसे त्याग करना सामायिक चारित्र है। ३५७. प्र.-छेदोपस्थापना चारित्र किसे कहते हैं ? उ०-सामायिक चारित्रसे डिगनेपर प्रायश्चित्तके द्वारा सावध कार्योंमें लगे हुए दोषोंको छेदकर पुनः संयम धारण करनेको छेदोपस्थापना चारित्र कहते हैं अथवा समस्त सावद्य योगका भेदरूपसे त्याग करना छेदोपस्थापना चारित्र है। ३५८. प्र०-परिहार विशुद्धि चारित्र किसे कहते हैं ? उ०—जिस चारित्रमें प्राणी-हिंसाको पूर्ण निवृत्ति होनेसे विशिष्ट विशुद्धि पाई जाती है उसे परिहार विशुद्धि चारित्र कहते हैं। इस चारित्रवालेके शरीरसे जीवोंका घात नहीं होता इसीसे इसका नाम परिहार विशुद्धि चारित्र है। ३५९. प्र०-परिहारविशुद्धि चारित्र किसके होता है ? उ०-जिसने अपने जन्मसे तीस वर्षको अवस्था तक सुखपूर्वक जीवन बिताया हो और फिर जिनदीक्षा लेकर आठ वर्ष तक तीर्थङ्करके निकट प्रत्याख्यान नामके नौवें पूर्वको पढ़ा हो और तीनों सन्ध्याओंको छोड़कर दो कोस विहार करनेका जिसका नियम हो, उस दृर्द्धरचर्याके पालक महामूनिको ही परिहारविशुद्धि चारित्र होता है। . ३६०. प्र०-सूक्ष्मसाम्पराय चारित्र किसे कहते हैं ? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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