Book Title: Charnanuyog Praveshika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 36
________________ चरणानुयोग-प्रवेशिका २१७. प्र०-देवसिक आदि प्रतिक्रमण में कायोत्सर्गका क्या प्रमाण है ? उ०-देवसिक प्रतिक्रमणमें एक सौ आठ उच्छ्वास, रात्रि सम्बन्धी प्रतिक्रमण में चौवन उच्छवास, पाक्षिक प्रतिक्रमणमें तीन सौ उच्छवास, चातुर्मासिक प्रतिक्रमणमें चार सौ उच्छ्वास और वार्षिक प्रतिक्रमणमें पांच सौ उच्छ्वास कायोत्सर्गके कालका प्रमाण है। तथा पांच महाव्रतोंमेंसे किसी एक महाव्रतमें अतिचार लगने पर १०८ उच्छ्वास प्रमाण कायोत्सर्ग करना चाहिये । गोचरी करके आनेपर, एक ग्रामसे दूसरे ग्राममें जाने पर, वन्दनाके लिये तीर्थङ्करोके कल्याणक स्थानोंमें जानेपर, मुनियोंके समाधि स्थानोंको वन्दनाके लिये जानेपर तथा मलमूत्र त्यागके लिये जानेपर पच्चीस उच्छवास कायोत्सर्ग करना चाहिये। २१८. प्र०-उच्छ्वाससे क्या अभिप्राय है ? उ.-प्राणवायूके भीतर जाने और बाहर निकालनेका नाम उच्छवास है। कायोत्सर्गके समय णमोकार मन्त्रका ध्यान किया जाता है। एकबार णमोकार मन्त्र के जपने में तोन उच्छवास लगते हैं-'णमो अरहंताणं णमो सिद्धाणं' इन दो पदोंके उच्चारणमें एक उच्छ्वास णमो आइरियाणं णमो उवज्झायाणं' इन दो पदोंके उच्चारणमें एक उच्छवास और 'णमो लोए सव्व साहणं' इस एकके उच्चारणमें एक उच्छ्वास । इसतरह नौ बार जप करनेपर सत्ताईस उच्छ्वास होते हैं। २१९. प्र०-कायोत्सर्गका प्रमाण क्या सबके लिये एक-सा ही है ? उ०-मायाचारको छोड़कर अपनी शक्ति और अवस्थाके अनुरूप ही कायोत्सर्ग करना चाहिये। यदि कोई तीस वर्षका युवा साधु सत्तर वर्षके वृद्ध साधुको समानता करता है तो वह अज्ञानी है। २२०. प्र०-कृतिकर्मकी क्या विधि है ? उ०-साधुको समस्त बाह्य और अभ्यन्तर परिग्रहकी चिन्तासे निवृत्त होकर योग्य कालमें, योग स्थानमें, योग्य आसनपर, योग्य मुद्रासे आवर्त और शिरोनतिपूर्वक नियमसे कृतिकर्म करना चाहिये। २२१. ३०-नित्य कृतिकर्म विधिका काल कितना है ? उ.-तीनों सन्ध्या वन्दनाओंका उत्कृष्ट काल छै छै घड़ी है। अर्थात् प्रतिदिन प्रातःको रातको अन्तिम तीन घड़ी और दिनकी आदि तीन घड़ी और शामको दिनकी अन्तिम तीन घड़ी और रातकी आदि तीन घड़ी तथा दोपहरको छै घड़ी कृतिकर्म करना चाहिये। २२२. प्र०--कृतिकर्मके योग्यस्थान और पीठ कौन-सा है ? उ०-जहाँ संक्लेश, परोषह और उपसर्गके कारण न हों ऐसा एकान्त, शान्त और रमणीक स्थान कृतिकर्मके योग्य है और जिसमें खटमल वगैरह न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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