Book Title: Charnanuyog Praveshika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 40
________________ चरणानुयोग-प्रवेशिका २४८. प्र०-प्रामित्य अथवा ऋणदोषका क्या स्वरूप है ? उ०-ऋण करके लिया हुआ अन्न वगैरह प्रामित्य अथवा ऋणदोषसे दूषित है। २४९. प्र०-परिवर्तित अथवा परावर्तदोष किसे कहते हैं ? उ.-'मेरे धानके चावल लेकर मुझे बढ़िया चावल दे दो, मैं साधुओंको भोजन कराऊँगा' इस प्रकार बदले में लिया गया अन्न परिवर्तित दोषसे दूषित है। २५०. प्र०-निषिद्ध दोष किसे कहते हैं ? उ०-मालिकके द्वारा अथवा अपनेको मालिक माननेवालेके द्वारा अथवा अन्य किसीके द्वारा मना करनेपर दिया हुआ दान यदि साधु ग्रहण करता है तो निषिद्ध नामका दोष है। २५१. प्र०-अभिहत दोष किसे कहते हैं ? उ०-जिस घरमें साधु आहार ग्रहण करे उस घरकी पंक्तिमें क्रमवार स्थित तोन या सात घरोंसे आया हुआ भोजन तो साधुके लिये योग्य है। किन्तु पंक्तिबद्ध तीन या सात घरोंके सिवाय अन्य घरोंसे आया हुआ अन्नादि अभिहृत दोषसे दूषित है। २५२. प्र०-उद्धिन्न दोष किसे कहते हैं ? उ०-जो धी गुड़ वगैरह डब्बेमें बन्द हो या सीलबन्द हो, उसे उघाड़कर देना उद्भिन्न दोष है । क्योंकि ऐसी वस्तुमें चींटी वगैरह घुस सकती है। २५३. प्र०-अच्छेद्य दोष किसे कहते हैं ? उ० -साधुओंके भिक्षा-श्रमको देखकर यदि राजा अथवा चोर गृहस्थोंसे कहे कि यदि तुम साधुओंको भिक्षा नहीं दोगे तो तुम्हारा द्रव्य चुरा लेंगे या तुम्हें गांवसे निकाल देंगे। इसप्रकार गृहस्थोंको डरा धमकाकर दिलवाया हुआ अच्छेद्य दोषसे दूषित है। २५४. प्र.-मालारोहण दोष किसे कहते हैं ? उ.- सीढ़ियोंके द्वारा घरके ऊपरको मंजिलपर चढ़कर वहां रखा हुआ भोज्य लाकर साधुको देना मालारोहण दोष है । ये सोलह उद्गम दोष हैं । २५५. प्र०-उत्पादन दोष कौनसे हैं ? उ०-धात्री, दूत, निमित्त, आजीव, वनीपक, क्रोध, मान, माया, लोभ, पूर्वस्तवन, पश्चातस्तवन, चिकित्सा, विद्या, मंत्र, चूर्ण और मूलकर्म ये १६ उत्पादन दोष हैं। २५६. प्र०-धात्रीदोष किसे कहते हैं ? उ०-धायके पांच काम होते हैं-बच्चेको नहलाना, कपड़े पहनाना, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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