Book Title: Charnanuyog Praveshika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 32
________________ चरणानुयोग-प्रवेशिका २५ प्रतिमामें अथवा उससे विपरीत प्रतिमामें राग द्वेष नहीं करना स्थापना सामायिक है। १७८. प्र०-द्रव्य सामायिक किसे कहते हैं ? उ०-सुवर्ण और मिट्टी आदि द्रव्योंमें समदर्शी होना द्रव्य सामायिक है। १७६. प्र०-क्षेत्र सामायिक किसे कहते हैं ? उ० --मनोहर उद्यान और भयानक जंगलमें समभाव होना क्षेत्र सामायिक है। १८. प्र०-काल सामायिक किसे कहते हैं ? उ०-प्रिय या अप्रिय प्रतीत होनेवाले वसन्त ग्रीष्म आदि ऋतुओंमें, दिन रातमें और कृष्ण शुक्ल पक्षोंमें राग-द्वेषका न होना काल सामायिक है। १८१. प्र०-भाव सामायिक किसे कहते हैं ? । उ०—समस्त जीवोंमें मैत्री भावका होना अथवा अशुभ परिणामका न होना भाव सोमायिक है। १८२. प्र०-स्तव किसे कहते हैं ? उ.--ऋषभ आदि चौबीस तीर्थङ्करोंका भक्तिपूर्वक स्तवन करना स्तव है। १८३. प्र०--स्तवके कितने प्रकार हैं ? उ-स्तवके भी छै प्रकार हैं-नामस्तव, स्थापनास्तव, द्रव्यस्तव, क्षेत्रस्तव, कालस्तव और भावस्तव। इनमेंसे आदिके पाँच व्यवहारसे स्तव हैं और भावस्तव निश्चयसे स्तव है। १८४. प्र०-नामस्तव किसे कहते हैं ? उ०-चौबीस तीर्थङ्करोंका एक हजार आठ नामोंसे स्तवन करना नामस्तव है। १८५. प्र०--स्थापनास्तव किसे कहते हैं ? उ०-रूप, ऊँचाई, आकार वगैरहके द्वारा चौबीस तीर्थङ्करोंको प्रतिमाओंका स्तवन करना स्थापनास्तव है। १८६. प्र०-द्रव्यस्तव किसे कहते हैं ? उ०-शरीर, चिह्न, गुण, ऊँचाई, रंग वगैरहके द्वारा चौबीस तीर्थङ्करोंका स्तवन करना द्रव्यस्तव है। १८७. प्र०-क्षेत्रस्तव किसे कहते हैं ? उ.--पवित्र हुए स्थानोंका वर्णन करना चौबीस तीर्थङ्करोंका क्षेत्र स्तव है। १८८. प्र०-कालस्तव किसे कहते हैं ? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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