Book Title: Chandrayan Vrat Katha Author(s): Publisher: View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है और पर्वतोंमें मेरुपर्वन उत्तमहै और चतुष्पदजीवोंमें गौउनमहै॥३॥ और धातूमैं कांचन उत्तमहै नै मै व्रजोंमें चांद्रायणबन उत्तमहै अब इसचांद्रायणघनका फल कहते हैं किसीने ब्रह्महत्या करीहोया || किसीनै सवर्णकोचोरी करीहोय किसीने मदिरापान पिया होय किसीने गुरुकी स्त्री गमन किया हो पातूनांकांचनचैवचूनंचांद्रायणंतथा॥ ब्रह्महाहेमहारीचूसरापोगरुनल्पगः 4 बत्तासंजायनेमुक्तिर्यासस्य्वच यथा॥अत्राप्युदाहरंनीममिनिहासंपुरातनम् 5 विश्वरूपनपोरवाशकेपणासुविचारित। एषगएहानिमेलोकतपोबल विशेषतः 6 मेनकांचसमाहूयवाक्यंचेदमुवाचह॥गच्छसुचनपस्थानविश्वरूपः नपत्यान 7 य॥४॥ नथापि इसचांद्रायण बनके करनेसें पापोंसें छूटनाहोजाय ऐसाचेदव्यास जीका क्चनहै इसपरएक प्राचीन इतिहास कहुताई // 5 // एकसमै विश्वरूपनपस्या कर्नातिनकों देखके हैं दने विचार कियाकि यह विश्वरूप तपकरके मेरेइंद्रलोककों ग्रहाकरेगा॥६॥नोमैसीकों विघ्न करूं ऐन For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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