Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RAMANAWWAMAKAWwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww www STRY अथचांद्रायणवतकथाभाषाटीकामारभ्यते. 049808 gyanmandir@kobatirth.org NAWWANA MORE %E M ANNOMARCH ALTRATAH Wwwwwwwwwwwwwwwwwwww NNNNNN For Private and Personal Use Only
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीसर्वेश्वरोजयाने अथ चांद्रायराबनकथाभाषाटीकाप्रारंभः॥ ॥एकसमय राजा युधिष्ठिर जिज्ञासहोके श्रीकृष्ण भगवानकों प्रश्न पूंछताभया हेभगवन् देवनदेव चतुर्दश लोकके ईश्वर जगनके प्रभु सबलोकके हिनकी कामना कर्के अर्थात् जिसमै सबनका हिनहोय ऐसा एक कोई भी वन मेरेकौं कहो श्रीगणेशायनमः युधिष्ठिरउवाच भगवन्देवदेवेशलोकनाथजगत्प्रभो॥ बतंकिंचिदास्माकंलोकानांहितकाम्यया 1 यंकृत्वामानवोभनयासर्वपापैः प्रमुच्यते // श्रीकृष्णावाच बचांदायगराजन्सर्वसिडिमदायकं 2 यथा विष्णुर्हिदेवानांडिपदांबाह्मणोयथानिगानांचयेथामेरुःगौर्वरिष्टाचतुष्प दाम् 2 . जिसवनकों मनुष्य भक्ति पूर्वक करके सब मन बचन काया पापसें छूट जाय ऐसा | व्रत मेरेकों कहो॥१॥ नवश्रीकृष्ण कहतेभयेकि हेराजन् युधिविर सर्वप्रकारकी सिडिका देनेवाला एसा व्रतोंमें उनम एकचांद्रायरा नामवनहै||जैसे देवनमें विष्णु उत्तमहै और हिपदजानीमें ब्राह्मण उत्तमा For Private and Personal Use Only
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है और पर्वतोंमें मेरुपर्वन उत्तमहै और चतुष्पदजीवोंमें गौउनमहै॥३॥ और धातूमैं कांचन उत्तमहै नै मै व्रजोंमें चांद्रायणबन उत्तमहै अब इसचांद्रायणघनका फल कहते हैं किसीने ब्रह्महत्या करीहोया || किसीनै सवर्णकोचोरी करीहोय किसीने मदिरापान पिया होय किसीने गुरुकी स्त्री गमन किया हो पातूनांकांचनचैवचूनंचांद्रायणंतथा॥ ब्रह्महाहेमहारीचूसरापोगरुनल्पगः 4 बत्तासंजायनेमुक्तिर्यासस्य्वच यथा॥अत्राप्युदाहरंनीममिनिहासंपुरातनम् 5 विश्वरूपनपोरवाशकेपणासुविचारित। एषगएहानिमेलोकतपोबल विशेषतः 6 मेनकांचसमाहूयवाक्यंचेदमुवाचह॥गच्छसुचनपस्थानविश्वरूपः नपत्यान 7 य॥४॥ नथापि इसचांद्रायण बनके करनेसें पापोंसें छूटनाहोजाय ऐसाचेदव्यास जीका क्चनहै इसपरएक प्राचीन इतिहास कहुताई // 5 // एकसमै विश्वरूपनपस्या कर्नातिनकों देखके हैं दने विचार कियाकि यह विश्वरूप तपकरके मेरेइंद्रलोककों ग्रहाकरेगा॥६॥नोमैसीकों विघ्न करूं ऐन For Private and Personal Use Only
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चा- बसा विचारके मेनका अप्सराको बोलायकेये वचनचोलाकि हे कंदरजुहारांकी धरनेवाली गुंजाजहां विधा | कथा. रूपतपस्या कर्ताहै॥॥निसको मोहिन करके नपस्पासें चलायदे ऐसाचन सुनके मेनका अप्सरा जहांमुनि नपस्या कर्ताहै वहांगई।।।।फिर वसंतऋनुकों और कामदेयकों साथलेके वनमेंगई वहांमुनीके पार्या नंग्रलोभययत्नेननपसोपिनिवर्तय॥सागातयनेयत्रसमुनिःमनपस्पनि 8 सा वसनंचकामंचगृहीत्वावनमाययो॥ तत्रागत्यमुनेः पावूरम्यं नृत्यूंचकारसाई हावभा वंततः कृत्वाभ्रुवोक्षेपमथाकरोत्॥तथापितनमानेवचकंपेहिनपसिनः 10 नारवाहि महातेजातपोबलसमन्धिनाचकारपरमंयनानिकंपिनयास्तदा 11 समागत्यस्वयंश कोनिजैश्वर्यभयान्विनः॥विमृश्यचमहाराजत्यविचार्यवधमुनेः१२ पके अच्छेमनोरन्या कोंकर्ना भई। हावभाव करके भुहारांकों चलाया नथापि तपस्वी मुनिका मन भिचला नहीं।।२०।। अरु|| || नपोबलयुक्तमहातेजस्वी मुनितिनअप्सराकों देरचके परमयत्न कर्ना भया परंतु चलानहीं॥११॥ तबरंद्र आ||| For Private and Personal Use Only
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पके इंद्रलोकजानेके भयसें मुनिकेंपासआयके हे महाराज युधिष्ठिर इंद्रनें मुनिकों मारोका विचारा 12 केवल स्वार्थ सिद्ध करनेकों तसरहोना है वो कार्य अकार्य कभीनही विचारताहै ऐसा प्राचीनभाचार्य कहते हैं // 13 // ऐसाइंद्र नब क्विारके अनि वेगवान वचसें नपस्या कर्नेहुवे मुनिका मस्तक छेदन फर्नाभ खार्थेकसाधनपरोकत्याकस्यंकदाचन।। नविमृश्यनिसूर्वकथयनिपुराविदः१३ इत्या लोच्यतदाशकोपबेशातीवरंहसा॥वपोवितन्तस्तस्यशिरश्चिच्छेदवंगतः१४ नदार इलदेहेतुविश्वरूपवधोद्भवा // ब्रह्महत्यामहाघोरालगनिस्मयुधिष्ठिर 15 नयादितोहि मघवाभ्रष्टतेजाबभूवह। प्रतिरषासर्वत्रजानाराजस्तदामुहुः१६ रव्यानिंजगामलों केनुदानवेदोमहाबलेः॥ या॥१४॥नबइंद्रकी देहमें विश्वरूपकेचपसेंउसनभई ऐसीमहाघोर भयानकब्रह्महत्या हेयुधिष्ठिर लागतीभई॥१५॥ निस ब्रह्महत्यासें पीडिन हुवाईतेजसे भष्ट हो। ताभया यह प्रति सर्वत्र भई कि वुराकाम करेगा उसीका बुराहोयगा॥१६॥ नब विश्वकर्माभि पुत्रका वध For Private and Personal Use Only
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चांव कथा हुवा निनकोंसनना भया पीछेकोधसें डाउनेत्र करके बेगसेंजटाकोउसाटन करके॥१७॥ अग्निके कुंड मैं मक्षेप करने में महारौद्रभयानक कृत्या उत्पन्न भई निनकरके देठिन महाअसर हुवाउनकानामरत्रा सर॥१८॥ऐसे विख्यान पनेकों महाबली दानवेंद्रप्रानि हुनोभयो हेराजन् युधिष्ठिर वोदानच दिनदिनम कोधसंरक्तनयनोजटामुत्साट्यवेगतः 17 अमिकुंडेचप्रक्षिप्यसारुत्याव्यमनायत ॥महापोरामहारौद्रानयारत्तोमहासरः 18 रयानिजगामलोकेतुदानवेंद्रोमहाबलः॥ प्रसहंवर्धनेराजन्निशविक्षिपमात्रनः महाबलोमहादैत्योबनातीवदारुराः॥षि भ्युनस्यभूयाद्राजनूसदेवासवासपाः 20 नदायुडमहापोरंतस्यदेवैर्बभूवह॥इंद्रोपियुयुधेतनवीरेणपृथिवीपते 21 निधनुषमात्र चधनें लगा॥१६॥पोमहाबलवान् दैत्यबठकर के अत्यंत भयानक तिनके भय करके इंद्रसहित सबदेवना भयभीनहोनेभयो। 20 // तच देवनके अरुनि नदैत्यके महाभयानक युद्ध होताभया हेपथ्वीका पनि रानायुधिष्ठिरइंद्रभी निनदैत्यकेसाथ युद्दकर्नाभया For Private and Personal Use Only
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नब घडापराकमधारी असुर संग्रामके वीचमें ऐरावन हस्तीसहिन इंद्रको मुखकर्के नाचमन कर्ता भया॥२२॥ तव रहस्पनिजी कुंभाव्हय नामें अस्यकों चलावनेभये निनमहाअस्वसें रमाकर वार पार उचा सीरचाने लगा॥२३॥ अरु प्रमादको प्राप्ति होनाभया तबइंद्रऐरावत हस्नी सहित स्त्रारूरके मुरपसें निस नुदासरोमहावीर्यऐरावनसमन्वितं। मपचानमहाबुद्देआचचाममुपेनवे 22 तदा कुंभाव्दयंचाखूमुमोचधिषगोगुरुः॥नेनासुरोमहारराजूभनेसममुहुर्मुहुः २२प्रमाद मगमन्त्रशकोनिस्तान्मुपान्॥ऐरावनेनसहितोदेवाहर्षमुपाययुः 25 पुनर्बभूवमध ननस्यचैवासुरेातु समषीन्समाहूयुतपोयोगधरास्तदा २५नंदायुमहाधोरेदेवनाबेलसू दने॥शकपास्येनसत्दृष्टारत्तमूचुरशकिनाः 25 रनाभया तब देवता हर्षिन होने भये॥२४ फिर दैत्यके अरु रंद्रके युद्ध होने लगा तिनसमें तप अरु योगकू धरनेवाले सप्तर्षियोंकू बोलायके // 25 // इंद्रा कछुकहना भया तब देवनके बलकेनाशकारक ऐसे पोरमहा भयानक युद्दमें सप्तर्षि शंकारहिन हर्षित होको For Private and Personal Use Only
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चांद्रान | इंद्रके यचनसें रत्रासरको बचन बोलने भये॥२६॥ मनोनिश्चितहोके स्वर्गका राज करूं // 27 // अरु नुम हे वासु रयथा योग्य पृथ्वीका राज्य करो तब हे युधिष्ठिर स्त्रा कर ऐसे वचन सनके॥२८॥ इंद्रसहिन देवतान कों बोलाय के ऐसा कहता भयाकि हे देवो तुमारेमें कपट अधिकहै इस्मेमै तुम्हारा वचन नही माननाई॥२९॥ जोतुम श अहंस्वर्गस्पराज्यहिविधास्यामिसमाहितः 27 त्वंचापिपृथिवीराज्यंकुरुरायथोचित॥शु बाबासुरोराजन्देवनाबलचिंतकाः 28 उवाचवचनदेवान्सपिभाष्यामहेश्वरान्॥नमन्येहबचोदेवायदिव्याजविशेषनः२९ कियनेचेदनोयूयशपथकतेमहंथामममृत्युर्यदाचेतेनभने चकदाचन 30 नराचीनदिवाचापिनो, वचनीरसैः। नशलनवचैवास्त्रैर्नपाषाणैर्नदारुभिः॥ 31 नदाहंपृथिवीराज्यकरिष्यामिपुरंदर॥ पय करो तो तुम फहोजैसा मैकरूं इतना काम मेरा होगाचाहिये कदापिकाल मेरी मृत्यु नहोय॥३०॥रात्रि में मृत्युनहोप दिनकाभीनहोय आलेसें अशष्फसें मृत्यु नहोय और शस्त्रसें अरु अस्वसें मृत्युनहोय फिरपापापा अरु काठसें मृत्युनहोय॥३१॥ नोमै पृथ्वीका राज्य क For Private and Personal Use Only
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |हेइंद्र ऐसा त्रासुरने कहा तब समयकों जान इंद्रसीकार कर्ना भया ॥३२॥पीछे कोई कालांतरमें रंद्र समु ट्रसें उसनभये ऐसे फेनफुसंध्यासमय देरवके उनसे वृत्रासुरका वध विचारनाभया॥३३॥ऐसे समयकों निज बुडिसें विचारके फेन आईनही अरु शुष्कभी नहीं और संध्या समय रात्रि दियसनही ऐसे जानके आपके बचऊंचकारनदेंद्रोपिसमयपनिपालकः॥३२॥नूदाकालानरेशकोपिलोक्यांबुधिसंभव।। फेनं. संध्यामुरबेराजन्यधंत्रस्यदारु 33 विचार्यसमयंचापिफेननत्रसमुजित विज्ञायबुद्धिन स्लास्मिनिजवजसमाक्षिप्त् 34 नेनफेनेनमघवान्निजयन्युनेनहि॥स्त्रचिच्छेदमहसाछि शीर्षोपनद्रुषि 35 पुनर्हत्यामहाराजत्रासुरयधोद्भग // इप्रपीडयामासदारुणानिभयंक / 36 को चलाया॥३४॥ फेनसहिन वनसें इंद्र वासरकों छेदन कर्नाभया नघ रमासुर छिन्नमस्तक होके पृथ्वीपर पडना भया॥३५।। नबहेमहारान युधिष्ठिर फिर त्रासुरफे मारनेसें उत्पन्नभई ऐसी हत्या दारुरा अत्यंत भयकारी इंद्रकों पीडिन कर्नी भई ॥३॥ऐसे हत्याकरके पीडिन इंद्र मलिनकातिभया नवस्वर्गको For Private and Personal Use Only
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क. बोडके भागगया // 37 // पापककै पीडितभया ऐसाइंद्रमानस सरोवरमें आया वहां कमलकीनाल में प्रवेश || होके पहुन काल नक रहनाभया॥३८॥ नब इंद्ररहित स्पर्गळू देयके देवना भयभीहुए अरुसबजन भेले डोके सला विचारते भये॥३॥इंद्र स्वर्गलोकमेंनही नावन् दूसरा कोई राजा करना चाहिये यहां ऐसा देवतानेंब्रम्हहत्याव्हयेनाशकोभन्मसिनयनिः॥वर्गविहायमघचापलायनपरोभवत् 37 दत्यमा नोतिपापेनमानसंशरागमेन्। सरोजनालमाविश्यञ्चासबहुवासरं 38 तनोभयान्विनादे चाः शक्रेशरहितंनदानाकेविलोक्यसंभूयचकुर्मेत्रसमंत्रिः३यादिदंगवेष्यामस्ताव द्राजाविधीयनांनिदाभूमौमहाराजन हुषाराजसत्तमः 4. राज्यंग्रकुरुनेनंचयाचिष्यामोहि गम्यना।। नेसविबुधास्तत्राजाननहुषप्रनि 41 याचयामासुरधिपोभवनाकस्यभूमिप। विचार किया उस वरत पृथ्वीपर नहुषनामेंराजा // 40 // राज्य कर्ना है उसको अपवंजाचना करिये चलो ना ब वह सब देवनहुपरानापनि ॥४९॥याचना कर्नेभयेकि हे भूमिकापनि अवतुम स्वर्गका राज्य करो 5 For Private and Personal Use Only
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जहांसपि पीसाइंद्र नावै नावन इंद्रतुमहोजायो॥ 42 // नव नहुषराजा तिन देवोंके ऐसे चचन सन| के बोलताभयाकि मैनो नहुषहूं अरु तुमबडे तेजस्वी देनताहो // 43 // मै तेनरहित वर्गका राजा कैसे हो उंगासो विचार करो ऐसा नहुपरांजाने कहा नव देवनहुषराजापनि बोलने भये॥४४।। हम तेरेको ते. यावदिदःसमायातिनादिंद्रोभवत्पभो 42 इतिवाक्यंतदानेषांश्रुलाराजाजगादह ॥अहंहिमानगोनामयूयंदेवामहोजसः४३कथराजाभवामोयहीनतेजाविचार्यता।। इत्युक्तास्लेस्पूनिनादेवाउजुलदानृपं 44 वयंतेजमदास्यामोमहातेजाविष्यति॥तहाराजापिस्वर्गस्पराज्यसमाहित 45 इंद्रस्पभुवनेकिंचित्ययदस्लिसुरोत्तमाः॥नस मत्यमादायदर्शयतुममाग्रतः 46 जदेवेंगे तिनमें तुम मा नेजस्तीहोगा तर राजा अच्छीतरहसें स्वर्गका राज्यकर्ताभया॥४५॥ पीछे राजा देवनकों वचन बोलाकि हे सरोत्तमोइंदभवना मेंजोकोई वस्तु है वो सब मेरेकू दिरपावो॥४६॥ नब देवनाओने इंद्रकी सब समृद्धि दिगई निनकीदे || For Private and Personal Use Only
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चाग | रयके परम प्रकाशवान नहुष राजा होनाभया // 47 // पीछे कोई समय नहुषराजा ऐसा पचन बोलनाभ|| याकि जो रंद्रासनपर बैठता है निनहीकी आशची स्त्री होनीहै॥४॥इसरास्ते यह इंद्राणी मेरीभीस्त्री होलीचाहियेजो इंद्राएली मेरी वी नहोयनो मै स्वर्गका राज्य नहीं करूंगा॥४६॥ ऐसा वचन सनके ई दर्शयामातरिंद्रस्थसमृहिंदेवनास्तदा॥सर्वतन्नहोरप्लाजहपरमद्युतिः 47 क्दा चिनहुषोराजाजगादक्चविंदम् ।।निदिंद्रासनयोहिशचीमस्पैवमेदिनी 48 अनोम. मापिचेंद्राशिकांताभवितुमर्हनि॥अन्यथानकरिष्यामिराज्यस्वर्गस्यकर्हि चित् 4 इनिवा क्यंतदाश्रुत्वाशचीभयसमन्विता।।गुरोगामशरसती जारशंकिता 50 गुरुवदानांश रण्याचमानाररक्षह॥नदाराजासरगुरुजगादेवाप्रदायताम् 51 टीसी अरु जारभाव शकित होके गुरु भीरहस्पनिजीको शरण जातीभई // 50 // नव गुरु शरोभाइ निनकीर- क्षाकर्नेभये नब राजा नहुष सरगुरु कों बोलत्ता भयाकि इस इंद्राणीकों मेरे को देवो // 51 / / / 6 For Private and Personal Use Only
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तब देखोने भी कहाकिहे सरगुरो इस शचीको इंद्रकौं देयो मैतीसचदेव हीनवलहों अरुयह राजा नहुष अनि बलवानहै॥५२॥ ऐसे देवनके चचन चार वार सनके गुरु रहस्पनि विचारकर्नेभए अरुनहुष राजाको वचन बोलते भएकि // 53 / / हेराजन्एकमास विलंबकरो एकमासमैंजोइंद्रनहीआवेगानोयह इंद्राणी नु| देवरुक्तंसरगुरोशचीसादीपनामिति। वयहीनबला:सर्वराजानीवमहाबलः 52 मंत्र यामासधिषणोदेववाक्यपुनःपुनः॥ श्रुत्वाजगादवचनंराजाननहषपनि 53 राजन्विलं व्यनामासमेकंयावत्सुरेश्वर।समायानित्यपर्याशचीकांता विनि 54 समयेचैन माकर्ण्यराजाराज्यचकारसः।देवाश्यकुस्तदोयोगसर्वेशकस्यलब्धये 55 अनिसमादि शदेवास्त्वंवेशकंगवेषयामनिर्गवेषयामासनप्राप्तःसरसत्तमः 56 मारी स्त्री होजायगी॥५४॥ ऐसे समय नियमकोंराजानहषसनकेस्वर्गकाराज्यकर्नाभया अरुसवदेव भेले.|| || होके इंद्रपीछे लाने के अर्थग्यमकर्नेभये॥५५॥ सचदेव अग्नि के आग्यां कर्ने भयेकि तुमाइंद्रकी / For Private and Personal Use Only
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||गोषणा करो तब अग्नि रंद्रकुंढूंढना भया-तथापि इंद्र नमिला॥५६॥ नबदेव इंद्रको ढूंटने के लिये उपयु ब.क. निनामें देवनाकोंआज्ञा कर्ने भए नव वह उपश्रुनिइदर उदरचोतरफ इंद्रकी गवेषणा भयी // 57 // ऐसी परिभ्रमण क हुईदेवी मानससरोवरमै कमलपत्रकेवीचमे छिपाहुवा ऐसे भ्रमररूपिइंद्ररहना उपश्रुतिंतदादेवाभादिशनशकलब्धये।इंद्रमन्वेषयामाससोपनिरितस्लनः 57 परि भ्रमत्सिादेविमानसेचुसरोवरे॥पनपत्रात्तरेगूढ़मूरंभ्रमररुपिगम् 58 पुरंदरइतिजात्यादेवानहर्षमुपाददौरहस्पतिमुरवादेवा रोनयामासराशुनं पर ब्रह्महत्यादिन्दीनंप्यनालेनिकेतनम्।। हस्पनिरुपाचेदंशक्रदेवचरत्वया 60 युतंशचीमहीपालो नहुषोनेतुमिच्छति॥इनिवाक्यंतदाश्रुत्वागुरुमतिपुरदरः 61 है।५॥ तिनकोय हपुरंदरहै ऐसाभानके देवनायके वधामणीदई तव सहस्पनि प्रमुख सब देवता हर्षको प्राप्त होनेभयो || 7 अरु इंद्रकैपासजाने भये॥५६॥ ब्रह्महत्याकरकेपीडिन अरु कमल नालमें छिपके बैठाहे ऐसेइंद्रको टह For Private and Personal Use Only
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |स्पनि वचन बोलने भयेकि हे देवनमें श्रेष्ठ इंद्र तुमनें ॥६॥सना नहुषराजा शची इंद्राणीकों लेनेकीइ च्छा कर्ताहै ऐसा वचन सनके इंद गुरुप्रति // 69 / / ऐसा बोलता भयाकि ब्रह्महत्या के पापयुक्त होने सें मैनोइंद्राएगीकी रक्षा नहीं कर सकताहूं अरुनहषराजा स्वर्गलोक का राज्य कर्ता है // 62|| फिरई इत्युवाचमयाचा पापेनन्हिशक्यते // नहषश्वेन्महीपालनाकलोकंभुनक्ति सेः 62 शचीग्रहीतुकामोयमुपायोत्रविधीयताम्।। अयंचेपृथिवीपालोब्राह्मणान्चेदपारंगान् 63 दुनोतिनितरांजीवनदामष्टःस्वयंभवेत्॥नचेद्राणी नराज्यवैकतुमर्हसिकर्हि चितूं 64 गुरुःप्रसन्नवदनःशचीपनियथोदितम्।।उवा चशक्रवचनशचीश्रुत्यानिविस्मिता 65 प्राणीलेनेकी इच्छा कर्ताहै इसकाउपाय करो जोयहनहुष राना वेदपाठी ब्राह्मरानकों॥ ६३॥बहुनसा दुःरच देवेनो स्वयंही राज्यभष्ट होजावे तब इंद्रा गीकू लेनेकों और राज्य करने कों योग्य नही॥ 64 // ऐसाइंद्रनें कहा तव गुरु बहस्पनिजी प्रसन्न होके || For Private and Personal Use Only
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चांद्रा व्र.क. यह वचनइंद्रके सब इंद्राएीको सनादिया तबइंद्राणी यह वचनरुनके अत्यंत आश्चर्य युक्त भई। 65 // उससमय नहुषराजा इंद्राणीको वचन बोलता भयाकि मासपूरण होनेलगा अब्तुममेरीली होना विलंब नहीं करना / / 66 / / तब इंद्राएी नहुष राजाप्रनि ऐसा वचन बोलतीभईकि हेराजन् मही अशंतेतुमहीपाठोशचीपनिजगादह॥शचीदानीभवस्नीत्वंनविलंबोविधीय ताम् 66 नर्दैद्राणीजगादेदंनहुषंमहिपंपाति। नविलंबोत्रराजेंद्रअवशिष्मदिन अयम् 77 यावदिवाकरश्यास्तनैनितांवन्महीपतिः॥ त्वंचब्राह्मण्यानेनधरा. नोत्रसमेहिये 68 अहंरिक्रममि पश्यामिहिजवाहनात्॥ऊमित्युत्तामा हीपालोहिंजान्यानेस्वंयोजयत् 69 नेमें दिन ३शेष रहेहै तोअवाविलंब नही करना। 67 // और सूर्यास्त नहोयउनके पहिले पहिले ब्राह्मणानळू पालरवीके नीचे जोनके पीछेउसमें तुमबैटके पृथ्वीसें चटके मेरेपान आनाकामैनुमारा हिजवाहनसे आनेका पराक्रम देरवूगी ऐसे इंद्राणीके च For Private and Personal Use Only
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चनराजा स्वीकार करके // 6 // अगस्त्य प्रमुख सबब्राह्मण सप्तर्षियनकों विष्णुकीमायासें मोहिन हो केपालरबीके नीचेजोडनेका हुकुमाकिया अरु वारंचार कहने लगा तब सप्तर्षि चोलेकि हेराजेंद्रयह काम बामानको उचित नहीं पालरपीके नीचें वहनेका॥७०॥ क्युंकि हेराजन्हम सबबाह्मणकररहिनन अगस्त्यप्रमुरयान्सविष्णुमायाविमोहिनः॥पुनःपुनरिनियोकंहिजेराजेंद्रनोचि तम् 70 अकरास्तुवयंसःनोदंड्यास्तेविशांपते॥अदंड्यान्दंड्यनाजादंड्यांपै यायदंडयन् 71 अयसोमहदामोनिनरकंचापिगच्छनिरनिवास्यंतदाकचरा जाचैवविमोहितः 72 नस्थेममदेशेहि हिजाइतिजगादसः॥नयापिसमहीपा लोहतबुझिस्मरातुरः 73 दंय हैं इसवास्ते कोईरानापदंड्यकों दंडदेवैअरुदंडपकों दंगा नदेवैवो॥७१।मोटे अपयशकों पामिहोय अरुनरकपनिपगजाताहै ऐसे ब्राह्मएनके वचनराजासन | केविष्णुमायासे मोहिनुहुवायका॥७२वचनबोलनाभपाहे बालगो मेरे देशमें नहीरहना ऐसा पचन For Private and Personal Use Only
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चांद्रा कहा तथापि बुद्धिहीन कामातुरराजाजोराचरीसें // 73 // ब्राह्मपाजूने है ऐसीपालरचीपरबैरके राजास्वर्ग| लोकळूआता भयातबमध्यान्हसमें मार्गके बीचमें शीप्रनाके लिये॥४॥नहुषराजाकुंभ योनिमहामुनि अगस्त्पनी प्रने पगके अंगुठे करमर्शकरके फिरसर्प सर्प ऐसाक्रनबोलत्ता भया॥७५।। तब महातेजस्वी द्विजयानंसमारुत्यजगामत्रिदिवंपनि।नदामध्यान्हसमयेमध्यमार्गवरान्निनः 74 सर्पसपैतिवचनंकुभयोनिमहामुनिम्।। पादांगुष्ठेननुहुषोनोदयामासभूः मिपः७५ नदागस्त्योमहातेजासंकुहस्तमुवाचह॥महासर्पोभवत्वंचप्रकार्यकरणादृशम् 76 नदासर्पोभवदाजानारदैननिवेदिनम्।रहस्पनिलदाशुबा शकंपनिजंगादह 77 अगस्त्यमुनिकोपायमान होके तिसराजाकों चच्न बोलने भये मोटे कार्यके करोसें हेरानन् तुमही महान सर्प होना।।०६॥ नबराजा नहुषमर्प होगपायेवानिारदजीनेरहस्पतिजीकों कही वहस्पनिसनके इंदानि कहने भये।।७७॥ हेदेखनमें श्रेष्ठइंद्र तुमस्वर्गलोक आचोविलंब For Private and Personal Use Only
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मत करोतबइंद्र बोला हेगरो मेरेको दोय हसाचारंवार दुःरर देतीहै॥७॥इससे मुझे बारे निकलनेको सामर्थ्य नहीं इसका तुम विचार करो तवग्रहस्पनिजीनें चांद्रायण व्रतका विचारकर // ६॥अरुइंद्रकीय ब्रह्महत्या मियनेकेलिये इद्राणीकेपास चांद्रायण व्रत कराया तब इंद्राणीशास्त्रोक्त विधिपूर्वक चांग अगम्यनादेवघ्नविलंबोविधीयनाम्॥मांचहत्याइयंजीयनोनिचमुहुर्मुहुः॥ 78 नाहंशक्नोमिनिर्गतुंबयाचैवविमृश्यताम् तदारहस्पनिश्चेत्यवनाद्रायः एशभम् 2 इंद्रस्यदुररचनाशायकारयामासनामनि ॥इंद्राएगीसाचकारेदंयथाशा संयथोदितं. व्रतंचांदायनामबृहस्पतिमुखाछुताइषस्यपूर्णिमारभ्ययनंचांद्रा यांचरेत् ८१राकायांचैवराकेशोभवेद्वष्टकलात्मकः॥ यावनकर्ना भई॥०॥ अब नांद्रायन पावन करनेकीरीनि लिरवते है इंद्राएगीने चांद्रायण नामें बन रहस्पनिके मुरयसेंसना आसोज शुक्ल पूर्णिन माकोंचांद्रायया बनकाप्रारंभ करना॥१राका पूर्णिमाके दिन राकेशचंद्र १६कलात्मक होनाहे इससे उस For Private and Personal Use Only
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वि.क. दिनव्रत करने वालोंकों 16 मास लेना॥८॥जैसे चंद्रमा दिन प्रनिएकेक कलासें हीन होनाह से रिनरम निएकेकग्रासबत करने चालेकेभीकमतीहोजाना है ॥३॥हेभारत युधिपिर चांदायरानमें हविष्यान्नकाकू कडीके अंडप्रमाए। ग्रासकहाहै॥४४॥पीरेजैसे चंद्रमावधे तैसेमासकों भी रधानाऔरएकादशीकों अरु नत्तस्यांषोडशनासाःग्रात्यावैवनचारिभिः॥८२॥यावरूधांशदीयेतप्रत्यहंकलयैकया ग्रासोपिप्रत्यहंतावडीयतेव्रतचारिभिः 3 कुकुण्डप्रमाणोहियासोभवतिभारताव्रतेचा दायरोगासोहविष्यानविनिर्मितः 84 यायसुधाशुचईतनावदासोपिचधुने।एकादश्यात्र तंकुर्यादमायामपिबतं 5 नेयासास्तहिनेदेयागोमुखेभरतर्षभ॥एकमेगराजेंद्ग्रनंचा ट्रायचरेत् 86 कृपोगासा:पदीयतेप्रवर्धनेनथासिते॥इंदो कलानुसारेहासरश्मि अमावास्याकों बत उपवासकरना॥४५॥ तबउसदिन के पास हेयुधिष्ठिरगायके || मुरयमें देनाइसरीनिसें हेराजेंद्र नांद्रायण बन करना॥८६॥ कृष्ण पक्षमें प्रासहीनहोना हैअरु शुक्ल पक्षमें गोदिनाः८७ For Private and Personal Use Only
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यास रद्धिहोनाहै चंद्रमाकी कलाके अनुसार कवलकीहास अरुहिकही॥७॥ ऐसेहेराजेंद्र युधिष्ठिर इंद्रा गीरंद्रकी प्राप्तिकेलियेअरु रंद्रकी ब्रह्महत्या मियनेकेलियेचांद्रायणाचन की भई॥८॥तबातिनशचीमा बनकरनेकरके इंद्रराज्यक्रू प्रामहोताभया ऐसे इस चांद्रायणव्रतके पनापसें स्वर्गके राज्यकुं पायके हर्षिनहो एवंचकारराजेंद्रशचीशकस्यलब्धये।व्रतंचांद्रायणनामब्रह्महत्यानिरत्तये नवतेनश यास्तुलेभेराज्यपुरंदरः॥ पुरंदरोपितेनैवलब्बाराज्यमुमोदसः०६हत्साहयविनिर्मुक्तःशचीस इसगलयेबिभजेदेवलोकंतयथोदित विधानतः९.आरंभेकलशस्थाप्यासवर्णफलसंयनः।। चंदस्यपूजनकर्योत्कलशेप्रत्यहंसुधीः६१ अरवंडंदीपदानस्यान्मासमेएनेननु॥ कथा गुयाद्राजन्शुचिर्भूलासमाहितः१२ ताभया||अरु 2 हत्यासे रहित होके इंद्राणीसहितत्वगमेंजायकेयथायोग्य प्रीनि पूर्वक देवलोककेंसुरवकों भोगवनाभया॥०।। अथचांदायरा बन पूजाऽद्यापनविधिः बनकेआरंभमें कलश स्थापन कर्ना सुवर्णअरुफउसंयुक्त और वनकर्नेवाला कलशकेउपरदिन पनि For Private and Personal Use Only
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चांग | चंद्रमाकी पूजनकरै॥२९॥ फिरपरचंडएनकादीपककरेमासपर्यंत औरपवित्र होके एकाग चिनसैं कथानक. श्रवण करे॥१२॥ औरउद्यापनमै एकगौदान देना अरु शय्यादान विशेषकरके देना पीछे विधिपूर्वक होमा करके फिर ब्राह्मण भोजन करावना॥३॥औरसुवर्णकीउमामहेघरकी मूर्ति बनायके भक्तितसरवेदिपेोंदेना उद्यापनेचगांदयात्शय्यादानविशेषतः॥ब्राह्मणान् भोजयेत्पन्भातहोमरुत्वाविधानतः 3 उमामाहेश्वरंदयातकविजेभकिनसरे॥दस्पमूर्तिरुप्यस्यरोहिएगीसहिनातदार लक्ष्मीनारा ययस्यापिमूर्निकांचननिर्मितां॥यथाशक्तिविधीयाथपूजयेद्भक्तिमानरः ६५संपूजयेहिधाने ननद विधिनाचरेन्॥मंडलादीनिराजेंद्रवित्तशाव्यंनकारयेएवंयाकुरुनेनारीनरोवायनमानसः॥ औरकी रोहिणीसहिन चंद्रमाकी मूर्ति बनायना॥१४॥ औरलक्ष्मीनारायणकीमूर्तियथा शक्तिसुपर्णकीकरके भक्किसहिन पूजनकर्ना॥३५॥औरसानधानकामंडलमांडके उसकेऊपरकुंभस्थापन करकेनि || 11 नकेागेसकेविधिपूर्वकपूनादिककरनापरंतुपिचकी शान्यतानहीकरनाअर्थात् छन्द्रव्यथोडावर्चनहीकरना|| || For Private and Personal Use Only
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऐसेकोईस्वी प्रथयापुरुष एकाममनसें करेयास्त्री सुरवकेमानिहोनी है फिर वैधव्यताकभीनहीावै॥७॥ और स्त्रियनकूपरमसौभाग्यकादेनेवालाहै फिरपुत्रपौत्रके सुरबकादेनेवालाहैफिरअश्वमेघारिपुन्यकेदेनेवालाहै औरसबनतोंके फलकों देनेवाला है।॥औरयनकर्नेवालाजिसश्कामनाकीच्याक हैचोही कामनानि चैसिड नारीसुषमवापोनिनवैधयप्रजायने 17 सौभाग्यदंपरस्त्रीयांपुत्रपौत्रसुखपदंगिश्वमेधादि पुण्यंसर्ववतफलप्रदत्ययंसमीहतेकामपामोनिनिश्चितायइमापृणुयानित्यकथांपाप माशिनी चांद्रायपास्यराजेंदसोश्यफलमभुते॥ वक्तामोताचपापेभ्योमुच्यनेनात्रसंशयः 100 निश्रीहमाद्रीचाद्रायणव्रतकथासपूर्णम् // होजानी औरजोकोई पापोंकीनाशकर्नेवालीइसकथाकों श्रवणकरे। तिनकोंहेराजेंडनांडायणवतकाअक्षयफलको प्राप्त होयौरकथाकावताऔरश्रोनासब पापों सेंछूटजाने हैइसमेंसंदेहनही / / 900 // इनिश्रीयोरपुरीयऋषभदत्तशास्त्रिविरचिनाहेमादीचांद्रायानकथा भाषारोकासमाप्तिमगमत् // यह पुस्तक मुंबईमैप-धीधरशियालजीकैज्ञानसागरला या सं०१९४८ मार्गशीर्ष४५ For Private and Personal Use Only
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रु. wwwimwww MARAwwwwwwwwwwwwwwwwww VAAAAAWAM AANTO APoरता RWAN JARAT SREY THAN इतिचांद्रायव्रतकथासमाप्तः Miwwww.y Lawwwwwwwwwwwwws ARRAIN wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwm For Private and Personal Use Only
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only