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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यास रद्धिहोनाहै चंद्रमाकी कलाके अनुसार कवलकीहास अरुहिकही॥७॥ ऐसेहेराजेंद्र युधिष्ठिर इंद्रा गीरंद्रकी प्राप्तिकेलियेअरु रंद्रकी ब्रह्महत्या मियनेकेलियेचांद्रायणाचन की भई॥८॥तबातिनशचीमा बनकरनेकरके इंद्रराज्यक्रू प्रामहोताभया ऐसे इस चांद्रायणव्रतके पनापसें स्वर्गके राज्यकुं पायके हर्षिनहो एवंचकारराजेंद्रशचीशकस्यलब्धये।व्रतंचांद्रायणनामब्रह्महत्यानिरत्तये नवतेनश यास्तुलेभेराज्यपुरंदरः॥ पुरंदरोपितेनैवलब्बाराज्यमुमोदसः०६हत्साहयविनिर्मुक्तःशचीस इसगलयेबिभजेदेवलोकंतयथोदित विधानतः९.आरंभेकलशस्थाप्यासवर्णफलसंयनः।। चंदस्यपूजनकर्योत्कलशेप्रत्यहंसुधीः६१ अरवंडंदीपदानस्यान्मासमेएनेननु॥ कथा गुयाद्राजन्शुचिर्भूलासमाहितः१२ ताभया||अरु 2 हत्यासे रहित होके इंद्राणीसहितत्वगमेंजायकेयथायोग्य प्रीनि पूर्वक देवलोककेंसुरवकों भोगवनाभया॥०।। अथचांदायरा बन पूजाऽद्यापनविधिः बनकेआरंभमें कलश स्थापन कर्ना सुवर्णअरुफउसंयुक्त और वनकर्नेवाला कलशकेउपरदिन पनि For Private and Personal Use Only
SR No.020142
Book TitleChandrayan Vrat Katha
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages26
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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