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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तब देखोने भी कहाकिहे सरगुरो इस शचीको इंद्रकौं देयो मैतीसचदेव हीनवलहों अरुयह राजा नहुष अनि बलवानहै॥५२॥ ऐसे देवनके चचन चार वार सनके गुरु रहस्पनि विचारकर्नेभए अरुनहुष राजाको वचन बोलते भएकि // 53 / / हेराजन्एकमास विलंबकरो एकमासमैंजोइंद्रनहीआवेगानोयह इंद्राणी नु| देवरुक्तंसरगुरोशचीसादीपनामिति। वयहीनबला:सर्वराजानीवमहाबलः 52 मंत्र यामासधिषणोदेववाक्यपुनःपुनः॥ श्रुत्वाजगादवचनंराजाननहषपनि 53 राजन्विलं व्यनामासमेकंयावत्सुरेश्वर।समायानित्यपर्याशचीकांता विनि 54 समयेचैन माकर्ण्यराजाराज्यचकारसः।देवाश्यकुस्तदोयोगसर्वेशकस्यलब्धये 55 अनिसमादि शदेवास्त्वंवेशकंगवेषयामनिर्गवेषयामासनप्राप्तःसरसत्तमः 56 मारी स्त्री होजायगी॥५४॥ ऐसे समय नियमकोंराजानहषसनकेस्वर्गकाराज्यकर्नाभया अरुसवदेव भेले.|| || होके इंद्रपीछे लाने के अर्थग्यमकर्नेभये॥५५॥ सचदेव अग्नि के आग्यां कर्ने भयेकि तुमाइंद्रकी / For Private and Personal Use Only
SR No.020142
Book TitleChandrayan Vrat Katha
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages26
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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