SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चाग | रयके परम प्रकाशवान नहुष राजा होनाभया // 47 // पीछे कोई समय नहुषराजा ऐसा पचन बोलनाभ|| याकि जो रंद्रासनपर बैठता है निनहीकी आशची स्त्री होनीहै॥४॥इसरास्ते यह इंद्राणी मेरीभीस्त्री होलीचाहियेजो इंद्राएली मेरी वी नहोयनो मै स्वर्गका राज्य नहीं करूंगा॥४६॥ ऐसा वचन सनके ई दर्शयामातरिंद्रस्थसमृहिंदेवनास्तदा॥सर्वतन्नहोरप्लाजहपरमद्युतिः 47 क्दा चिनहुषोराजाजगादक्चविंदम् ।।निदिंद्रासनयोहिशचीमस्पैवमेदिनी 48 अनोम. मापिचेंद्राशिकांताभवितुमर्हनि॥अन्यथानकरिष्यामिराज्यस्वर्गस्यकर्हि चित् 4 इनिवा क्यंतदाश्रुत्वाशचीभयसमन्विता।।गुरोगामशरसती जारशंकिता 50 गुरुवदानांश रण्याचमानाररक्षह॥नदाराजासरगुरुजगादेवाप्रदायताम् 51 टीसी अरु जारभाव शकित होके गुरु भीरहस्पनिजीको शरण जातीभई // 50 // नव गुरु शरोभाइ निनकीर- क्षाकर्नेभये नब राजा नहुष सरगुरु कों बोलत्ता भयाकि इस इंद्राणीकों मेरे को देवो // 51 / / / 6 For Private and Personal Use Only
SR No.020142
Book TitleChandrayan Vrat Katha
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages26
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy