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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चांद्रा व्र.क. यह वचनइंद्रके सब इंद्राएीको सनादिया तबइंद्राणी यह वचनरुनके अत्यंत आश्चर्य युक्त भई। 65 // उससमय नहुषराजा इंद्राणीको वचन बोलता भयाकि मासपूरण होनेलगा अब्तुममेरीली होना विलंब नहीं करना / / 66 / / तब इंद्राएी नहुष राजाप्रनि ऐसा वचन बोलतीभईकि हेराजन् मही अशंतेतुमहीपाठोशचीपनिजगादह॥शचीदानीभवस्नीत्वंनविलंबोविधीय ताम् 66 नर्दैद्राणीजगादेदंनहुषंमहिपंपाति। नविलंबोत्रराजेंद्रअवशिष्मदिन अयम् 77 यावदिवाकरश्यास्तनैनितांवन्महीपतिः॥ त्वंचब्राह्मण्यानेनधरा. नोत्रसमेहिये 68 अहंरिक्रममि पश्यामिहिजवाहनात्॥ऊमित्युत्तामा हीपालोहिंजान्यानेस्वंयोजयत् 69 नेमें दिन ३शेष रहेहै तोअवाविलंब नही करना। 67 // और सूर्यास्त नहोयउनके पहिले पहिले ब्राह्मणानळू पालरवीके नीचे जोनके पीछेउसमें तुमबैटके पृथ्वीसें चटके मेरेपान आनाकामैनुमारा हिजवाहनसे आनेका पराक्रम देरवूगी ऐसे इंद्राणीके च For Private and Personal Use Only
SR No.020142
Book TitleChandrayan Vrat Katha
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages26
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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