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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चनराजा स्वीकार करके // 6 // अगस्त्य प्रमुख सबब्राह्मण सप्तर्षियनकों विष्णुकीमायासें मोहिन हो केपालरबीके नीचेजोडनेका हुकुमाकिया अरु वारंचार कहने लगा तब सप्तर्षि चोलेकि हेराजेंद्रयह काम बामानको उचित नहीं पालरपीके नीचें वहनेका॥७०॥ क्युंकि हेराजन्हम सबबाह्मणकररहिनन अगस्त्यप्रमुरयान्सविष्णुमायाविमोहिनः॥पुनःपुनरिनियोकंहिजेराजेंद्रनोचि तम् 70 अकरास्तुवयंसःनोदंड्यास्तेविशांपते॥अदंड्यान्दंड्यनाजादंड्यांपै यायदंडयन् 71 अयसोमहदामोनिनरकंचापिगच्छनिरनिवास्यंतदाकचरा जाचैवविमोहितः 72 नस्थेममदेशेहि हिजाइतिजगादसः॥नयापिसमहीपा लोहतबुझिस्मरातुरः 73 दंय हैं इसवास्ते कोईरानापदंड्यकों दंडदेवैअरुदंडपकों दंगा नदेवैवो॥७१।मोटे अपयशकों पामिहोय अरुनरकपनिपगजाताहै ऐसे ब्राह्मएनके वचनराजासन | केविष्णुमायासे मोहिनुहुवायका॥७२वचनबोलनाभपाहे बालगो मेरे देशमें नहीरहना ऐसा पचन For Private and Personal Use Only
SR No.020142
Book TitleChandrayan Vrat Katha
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages26
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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