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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |हेइंद्र ऐसा त्रासुरने कहा तब समयकों जान इंद्रसीकार कर्ना भया ॥३२॥पीछे कोई कालांतरमें रंद्र समु ट्रसें उसनभये ऐसे फेनफुसंध्यासमय देरवके उनसे वृत्रासुरका वध विचारनाभया॥३३॥ऐसे समयकों निज बुडिसें विचारके फेन आईनही अरु शुष्कभी नहीं और संध्या समय रात्रि दियसनही ऐसे जानके आपके बचऊंचकारनदेंद्रोपिसमयपनिपालकः॥३२॥नूदाकालानरेशकोपिलोक्यांबुधिसंभव।। फेनं. संध्यामुरबेराजन्यधंत्रस्यदारु 33 विचार्यसमयंचापिफेननत्रसमुजित विज्ञायबुद्धिन स्लास्मिनिजवजसमाक्षिप्त् 34 नेनफेनेनमघवान्निजयन्युनेनहि॥स्त्रचिच्छेदमहसाछि शीर्षोपनद्रुषि 35 पुनर्हत्यामहाराजत्रासुरयधोद्भग // इप्रपीडयामासदारुणानिभयंक / 36 को चलाया॥३४॥ फेनसहिन वनसें इंद्र वासरकों छेदन कर्नाभया नघ रमासुर छिन्नमस्तक होके पृथ्वीपर पडना भया॥३५।। नबहेमहारान युधिष्ठिर फिर त्रासुरफे मारनेसें उत्पन्नभई ऐसी हत्या दारुरा अत्यंत भयकारी इंद्रकों पीडिन कर्नी भई ॥३॥ऐसे हत्याकरके पीडिन इंद्र मलिनकातिभया नवस्वर्गको For Private and Personal Use Only
SR No.020142
Book TitleChandrayan Vrat Katha
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages26
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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