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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क. बोडके भागगया // 37 // पापककै पीडितभया ऐसाइंद्रमानस सरोवरमें आया वहां कमलकीनाल में प्रवेश || होके पहुन काल नक रहनाभया॥३८॥ नब इंद्ररहित स्पर्गळू देयके देवना भयभीहुए अरुसबजन भेले डोके सला विचारते भये॥३॥इंद्र स्वर्गलोकमेंनही नावन् दूसरा कोई राजा करना चाहिये यहां ऐसा देवतानेंब्रम्हहत्याव्हयेनाशकोभन्मसिनयनिः॥वर्गविहायमघचापलायनपरोभवत् 37 दत्यमा नोतिपापेनमानसंशरागमेन्। सरोजनालमाविश्यञ्चासबहुवासरं 38 तनोभयान्विनादे चाः शक्रेशरहितंनदानाकेविलोक्यसंभूयचकुर्मेत्रसमंत्रिः३यादिदंगवेष्यामस्ताव द्राजाविधीयनांनिदाभूमौमहाराजन हुषाराजसत्तमः 4. राज्यंग्रकुरुनेनंचयाचिष्यामोहि गम्यना।। नेसविबुधास्तत्राजाननहुषप्रनि 41 याचयामासुरधिपोभवनाकस्यभूमिप। विचार किया उस वरत पृथ्वीपर नहुषनामेंराजा // 40 // राज्य कर्ना है उसको अपवंजाचना करिये चलो ना ब वह सब देवनहुपरानापनि ॥४९॥याचना कर्नेभयेकि हे भूमिकापनि अवतुम स्वर्गका राज्य करो 5 For Private and Personal Use Only
SR No.020142
Book TitleChandrayan Vrat Katha
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages26
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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