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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चांव कथा हुवा निनकोंसनना भया पीछेकोधसें डाउनेत्र करके बेगसेंजटाकोउसाटन करके॥१७॥ अग्निके कुंड मैं मक्षेप करने में महारौद्रभयानक कृत्या उत्पन्न भई निनकरके देठिन महाअसर हुवाउनकानामरत्रा सर॥१८॥ऐसे विख्यान पनेकों महाबली दानवेंद्रप्रानि हुनोभयो हेराजन् युधिष्ठिर वोदानच दिनदिनम कोधसंरक्तनयनोजटामुत्साट्यवेगतः 17 अमिकुंडेचप्रक्षिप्यसारुत्याव्यमनायत ॥महापोरामहारौद्रानयारत्तोमहासरः 18 रयानिजगामलोकेतुदानवेंद्रोमहाबलः॥ प्रसहंवर्धनेराजन्निशविक्षिपमात्रनः महाबलोमहादैत्योबनातीवदारुराः॥षि भ्युनस्यभूयाद्राजनूसदेवासवासपाः 20 नदायुडमहापोरंतस्यदेवैर्बभूवह॥इंद्रोपियुयुधेतनवीरेणपृथिवीपते 21 निधनुषमात्र चधनें लगा॥१६॥पोमहाबलवान् दैत्यबठकर के अत्यंत भयानक तिनके भय करके इंद्रसहित सबदेवना भयभीनहोनेभयो। 20 // तच देवनके अरुनि नदैत्यके महाभयानक युद्ध होताभया हेपथ्वीका पनि रानायुधिष्ठिरइंद्रभी निनदैत्यकेसाथ युद्दकर्नाभया For Private and Personal Use Only
SR No.020142
Book TitleChandrayan Vrat Katha
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages26
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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