Book Title: Chandrayan Vrat Katha
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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मत करोतबइंद्र बोला हेगरो मेरेको दोय हसाचारंवार दुःरर देतीहै॥७॥इससे मुझे बारे निकलनेको सामर्थ्य नहीं इसका तुम विचार करो तवग्रहस्पनिजीनें चांद्रायण व्रतका विचारकर // ६॥अरुइंद्रकीय ब्रह्महत्या मियनेकेलिये इद्राणीकेपास चांद्रायण व्रत कराया तब इंद्राणीशास्त्रोक्त विधिपूर्वक चांग अगम्यनादेवघ्नविलंबोविधीयनाम्॥मांचहत्याइयंजीयनोनिचमुहुर्मुहुः॥ 78 नाहंशक्नोमिनिर्गतुंबयाचैवविमृश्यताम् तदारहस्पनिश्चेत्यवनाद्रायः एशभम् 2 इंद्रस्यदुररचनाशायकारयामासनामनि ॥इंद्राएगीसाचकारेदंयथाशा संयथोदितं. व्रतंचांदायनामबृहस्पतिमुखाछुताइषस्यपूर्णिमारभ्ययनंचांद्रा यांचरेत् ८१राकायांचैवराकेशोभवेद्वष्टकलात्मकः॥ यावनकर्ना भई॥०॥ अब नांद्रायन पावन करनेकीरीनि लिरवते है इंद्राएगीने चांद्रायण नामें बन रहस्पनिके मुरयसेंसना आसोज शुक्ल पूर्णिन माकोंचांद्रायया बनकाप्रारंभ करना॥१राका पूर्णिमाके दिन राकेशचंद्र १६कलात्मक होनाहे इससे उस For Private and Personal Use Only

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