Book Title: Chandrayan Vrat Katha
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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चांद्रा कहा तथापि बुद्धिहीन कामातुरराजाजोराचरीसें // 73 // ब्राह्मपाजूने है ऐसीपालरचीपरबैरके राजास्वर्ग| लोकळूआता भयातबमध्यान्हसमें मार्गके बीचमें शीप्रनाके लिये॥४॥नहुषराजाकुंभ योनिमहामुनि अगस्त्पनी प्रने पगके अंगुठे करमर्शकरके फिरसर्प सर्प ऐसाक्रनबोलत्ता भया॥७५।। तब महातेजस्वी द्विजयानंसमारुत्यजगामत्रिदिवंपनि।नदामध्यान्हसमयेमध्यमार्गवरान्निनः 74 सर्पसपैतिवचनंकुभयोनिमहामुनिम्।। पादांगुष्ठेननुहुषोनोदयामासभूः मिपः७५ नदागस्त्योमहातेजासंकुहस्तमुवाचह॥महासर्पोभवत्वंचप्रकार्यकरणादृशम् 76 नदासर्पोभवदाजानारदैननिवेदिनम्।रहस्पनिलदाशुबा शकंपनिजंगादह 77 अगस्त्यमुनिकोपायमान होके तिसराजाकों चच्न बोलने भये मोटे कार्यके करोसें हेरानन् तुमही महान सर्प होना।।०६॥ नबराजा नहुषमर्प होगपायेवानिारदजीनेरहस्पतिजीकों कही वहस्पनिसनके इंदानि कहने भये।।७७॥ हेदेखनमें श्रेष्ठइंद्र तुमस्वर्गलोक आचोविलंब For Private and Personal Use Only

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