Book Title: Chandrayan Vrat Katha Author(s): Publisher: View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पके इंद्रलोकजानेके भयसें मुनिकेंपासआयके हे महाराज युधिष्ठिर इंद्रनें मुनिकों मारोका विचारा 12 केवल स्वार्थ सिद्ध करनेकों तसरहोना है वो कार्य अकार्य कभीनही विचारताहै ऐसा प्राचीनभाचार्य कहते हैं // 13 // ऐसाइंद्र नब क्विारके अनि वेगवान वचसें नपस्या कर्नेहुवे मुनिका मस्तक छेदन फर्नाभ खार्थेकसाधनपरोकत्याकस्यंकदाचन।। नविमृश्यनिसूर्वकथयनिपुराविदः१३ इत्या लोच्यतदाशकोपबेशातीवरंहसा॥वपोवितन्तस्तस्यशिरश्चिच्छेदवंगतः१४ नदार इलदेहेतुविश्वरूपवधोद्भवा // ब्रह्महत्यामहाघोरालगनिस्मयुधिष्ठिर 15 नयादितोहि मघवाभ्रष्टतेजाबभूवह। प्रतिरषासर्वत्रजानाराजस्तदामुहुः१६ रव्यानिंजगामलों केनुदानवेदोमहाबलेः॥ या॥१४॥नबइंद्रकी देहमें विश्वरूपकेचपसेंउसनभई ऐसीमहाघोर भयानकब्रह्महत्या हेयुधिष्ठिर लागतीभई॥१५॥ निस ब्रह्महत्यासें पीडिन हुवाईतेजसे भष्ट हो। ताभया यह प्रति सर्वत्र भई कि वुराकाम करेगा उसीका बुराहोयगा॥१६॥ नब विश्वकर्माभि पुत्रका वध For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26